Book Title: Dravyanubhav Ratnakar
Author(s): Chidanand Maharaj
Publisher: Jamnalal Kothari

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Page 225
________________ [द्रध्यानुभव-रत्नाकर। योनि इसकी भी सर्वज्ञदेव नियो तेइन्द्रिय की भी हैं। ये १९४] रस, स्पर्श, आदि के भेद होने से दो लाख योनि इसकी ने देखी। इसी रीति से दो लाख योनियाँ तेइन्द्रिय की भी कीड़ो, जू, माँकड़ आदि अनेक प्रकार के जीव है। पर लिखे स्पर्शादि के भेद होने से दो लाख योनि सर्वजनिक देखी हैं। इसी रीति से चौइन्द्रिय की भी दो लाख योनि है। इस चौइन्द्रिय में बिच्छू, पतङ्ग, भंवरा, भंवरी, ततैया, बर, मक्खी, मच्छर, डाँस आदि अनेक जीव हैं। इनकी भी ऊपर लिखे स्पर्शादिके भेद से सर्वज्ञदेव ने दो लाख योनि देखी। इन सबको मिलायकर विकले. न्द्रिय, (बे इन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय ) जीवो की आठ लाख योनि हुई। पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच की चार लाख योनि हैं। पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच के पांच भेद हैं। एक तो स्थलचर अर्थात् जमीन पर चलनेवाले, दूसरा जलचर-पानी में चलनेवाले, तीसरा खेचर अर्थात् आकाश में उड़नेवाले पक्षी, चौथा उरपरिसर्प अर्थात् पेट से चलनेवाले, पांचवां भुजपरिसर्प अर्थात् भुजा से चलनेवाले। उनमें स्थलचर के गाय, भैंस, बकरी, गधा, ऊँट, घोड़ा, हाथी, हिरन, भेड़, बाघ, स्यारिया, मेंढ़, सूअर, कुत्ता, बिल्ली, इत्यादि अनेक भेद हैं। इनकी प्रत्येक जाति म फिर भी अनेक भेद हैं। इस रीति से जलचर अर्थात् पानी में चलने वाले के भी कछुआ, मगर, मछली, घडियाल, नाका, आदि अनेक भद हैं। इनके भी जाति २ के फिर अनेक भेद हैं। इस रीतिसे आकाश में उड़नेवाले मोर, कबूतर, बाज, सुआ, चिड़िया, काग, मेना, तोता, इत्यादि में भी प्रत्येक के अनेक भेद हैं। उरपरिस पेट से चलनेवाले के भी सर्प, दुमही, अजगरादि कई भेद है। भी इनमें एक २ जाति में अनेक भेद होते हैं। ऐसे ही भुज अर्थात् हाथ से चलनेवाले भी नोलीया, मूसा, टीटोडी वर्ग प्रकार के हैं। इस रीति से इन पांचों तिथंचों में भी एक २ अनेक भेद हैं। इनकी वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, आदि भेदस देव वीतरागने चार लाख योनि कही है। इसी तरह से परेवा, रादि कई भेद हैं। फिर ऐसे ही भुजपरिसर्प H, टीटोडी वगैरः अनेक चों में भी एक २ जाति के आदि भेदसे श्रीसर्व। तरह से मारकी में Scanned by CamScanner

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