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द्रव्यानुभव-रत्नाकर।
नार
[ १६५ रहनेवाले हैं, उनकी भी चार लाख योनी हैं। उन
में भी वर्ण, रस, गन्ध, स्पर्श का भेद होने से योनी के चार बाख भेद होते हैं । देवता में भी चार लाख योनी सर्वज्ञदेव ने देखी हैं,
देवताओं में भी नीच, ऊँच, कोई भवनपती, कोई व्यन्तर-भूतहर कोई ज्योतिषी, कोई वैमानिक, कोई किलबिषिया इत्यादि अनेक भेद हैं जो शास्त्रों में भी गिनाये हैं। इनमें भी रूप, रस, गन्ध, स्पर्श आदि के ही भेद होने से चार लाख योनी है। इस तरह विकलेदिय से यहाँ तक मिलाय कर १८ लाख योनी हुई। पूर्वोक्त स्थावर की ५२ लाख मिलाने से सत्तर (७०) लाख योनी हुई। मनुष्य की योनी १४ लाख हैं इस माफिक सब मिलाकर चार गति की ८४ लाख योनी हुई।
प्रश्न-आपने सत्तर लाख जीव-योनि तक तो वर्णन किया सो लिखे मुजब अनुमान से सिद्ध होता है, परन्तु मनुष्यों की चौदह लाख योनि क्योंकर बनेगी ?
उत्तर-भो देवानुप्रिय ! जैसे हमने सत्तर लाख योनियों का वर्णन किया, उनको अनुमान से सिद्ध करते हो, तैसे ही मनुष्यों में भी सूक्ष्मबुद्धि से देखने पर रूप, रस, गन्ध, स्पर्शादि भेद से अनेक प्रकार के भेद मालूम होता है। जैसे कबूतर एक जाति है, परन्तु उन कबूतरों की एक जाति में भी लक्खौ, मोतिया, अबरख, इत्यादि अनेक भेद हैं। देखते ही उनके पालनेवाले लोग उसको जानते है। अथवा जैसे घोड़ा एक नाम है, परन्तु उनमें भी अनेक तरह के भेद हैं, काई टॉगन है, कोई सरङ, कोई चितकबरा है। जो लोग घोड़ों की परीक्षा कर जानते हैं, वही उनकी जातों की भी जानते हैं। अथवा सप ऐसा एक नाम है, परन्तु उसमें भी कोई कागावंशी है, कोई कागाडोंग है, कोई भैंसाडोम, कोईरक्तवसी, कोई पद्म, कोई कालगडीता, ाई पनीही, सो भी जो सांपोंके पकड़नेवाले हैं वे लोग उनकी ता को भी जानते.हैं। अथवा जैसे चावल एक नाम है, परन्तु
कोई तो हंसराज हैं, कोई रायमुनिया है, कोई कौमुदी हैं, कोई
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