Book Title: Dravyanubhav Ratnakar
Author(s): Chidanand Maharaj
Publisher: Jamnalal Kothari

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Page 217
________________ [द्रव्यानुभव-रत्नाकर। हते हैं कि जिस समय में , देव में कुदेव का नास्तिपना १८६] हुआ। अब स्यात् अस्ति स्यात् नास्ति भांगा कहते हैं किदेव में देव का अस्तित्व है, उसी समय देव में कुदेव का है, सो यह दोनों धर्म एक ही समयमें मौजूद हैं, इस वास्ते तीसर कहा। अब स्यात् अवक्तव्य नाम भांगा: कहते है-स्यात् देव अब है, कहने में न आवे सो अवक्तव्य है। जिस समय देवमें देवक अस्तिपना है उसी समय देवमें कुदेव का नास्तिपना है, तो दोनों धर्म एक समय होनेसे जो अस्ति कहे तब तो नास्तिपनेका मृषावाद आता हैं, और जो नास्ति कहे तो अस्तिपनेका मृषावाद आता है, अर्थात् जठ आता है, क्योंकि दोनों अर्थ कहने की एक समयमें वचनकी शक्ति नहीं, इस वास्ते अवक्तव्य है। ____ अब स्यात् अस्ति अवक्तव्य भांगा कहते है । स्यात् अस्तिदेव अवक्तव्य, यह हुआ कि देवके अनेक धर्म अस्तिपने में है परन्तु ज्ञानी जान सक्ता है, और कह नहीं सकता। जैसे कोई गानेका समझनेवाला प्रवीण पुरुष गानको श्रवणकरके उस श्रोत्र-इन्द्रियसे प्राप्त हुआ जो गानका रस उसको जानता है, परन्तु वचन से यही कहता है कि अहा क्या वात है, अथम शिर हिलाने के सिवाय कुछ कह नहीं सकता, तो देखो उस पुरुष को उस राग रागिनी की मजा में तो अस्तिपना है परन्तु वचन करके कह .. नहीं सक्ता। इसरीतिसे देव में देवपना जाननेवालेको देवपना उसके चित्त में है, परन्तु वचनसे न कह सके, इसवास्ते स्यात्अस्ति अवक्तव्य हुआ. • अब छठा. भांगा स्यानास्ति अवक्तव्य इस माफिक जानना चा • कि नास्तिपना भी देवमें अस्तिपनेसे है, परन्तु वचनसे कहना आवे, क्योंकि जिस समयमें देवका अस्तिपना हैं उसी समय नास्तिपना उस देवमें बना हुआ है, जिसको विचारनेवाला . विचारता है, परन्तु जो चित्तमें ख्याल है सो नहीं कह सक्ता। स्यात् नास्ति अवक्तव्य भांगा हुआ। अब स्यात् अस्ति ना अवक्तव्य मांगा कहते हैं कि जिस समयमें देवमें अस्तिप समय कुदेवका नास्तिपना, युगपत्-अर्थात् एक कालम न कहा जा सके, क्योंकि देखोजैसे मिश्री और काली मचित्र Scanned by CamScanner | विचारनेवाला चित्तमें । कह सका। इसलिये "त् अस्ति नास्ति युगपद् स्वमें अस्तिपना है उसी एक कालमें अवक्तव्य-जो काली मीर्चघोंटकर गुलाब .

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