Book Title: Dravyanubhav Ratnakar
Author(s): Chidanand Maharaj
Publisher: Jamnalal Kothari

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Page 211
________________ १८. [द्रव्यानुभव-रत्नाकर। का वर्णका समुदाय उसको र आदिक अर्थवाले हैं और Show वाक्य कहते हैं। अर्थवाला जो वर्ण अथवा वर्णका सम पद कहते हैं । अकारादिक वर्ण भी ईश्वर आदिक अर्थवा वैद्यादिक पदमें वर्णका समुदाय अर्थवाला हैं । ब्याकरण की री 'नीलो घटः' इस वाक्यमें दो पद हैं, और न्यायकी रीतिसे चार परन्तु व्याकरणके मतमें भी अर्थ-बोधकता चार ही समुदायमें है। चार नहीं हैं। सो इस शाब्दीप्रमाकी यह प्रक्रिया है कि नीलोप इस वाक्य को सुननेसे श्रोताको सकल पदका श्रवण साक्षातकार होता है। पदके साक्षात्कार से पदार्थकी स्मृति होती है। अब इस जगह कोई ऐसी शंका करता है कि . पदका अनुभव पदकी स्मृतिका हेतु है, अथवा पदार्थका अनुभव पदार्थकी स्मृतिका हेतु है; पदका साक्षात्कार पदार्थ की स्मृतिका हेतु बने नहीं, क्योंकि जिस वस्तु का पूर्व (पहले ) अनुभव होता है उसकी स्मृति होती है, अन्यके अनुभवसे अन्यकी स्मृति होवे नहीं । इसलिये पदके ज्ञानसे पदार्थकी स्मृति बने मही। इस शङ्काका ऐसा समाधान है कि यद्यपि संस्कारद्वारा पदार्थ अनुभव ही पदार्थकी स्मृतिका हेतु है, तथापि उद्भूत संस्कारसे स्मृति होती है, अनुभूत संस्कार से स्मृति होय नहीं। जो अनुभूत संस्कारसे भी स्मृति होती होय तो अनुभूत पदार्थकी स्मृति होनी चाहिये। इसलिये पदार्शके संस्कार के उद्भव का हेतु पद-ज्ञान है, क्योंकि सम्बंधित ज्ञानसे तथा सदृश पदार्थके ज्ञानसे अथवा चिन्तवन से संस्कार उद्भूत होते हैं । तिससे स्मृति होती है। जैसे पुत्रको देख के पिता को और पिताको देखके पुत्र की स्मृति होती है, क्योंकि तिस जगह सम्बंधी का ज्ञान संस्कार के उदभव का हेतु है । तेस हा तपखीको देखे तव पूर्व देखे हुए अन्य तपस्वी कि स्मृति होती है। जगह संस्कार का उदबोधक सदश-दर्शन है। और जगह एकान्तमें वैठके अनुभूत पदार्थका चिन्तवन तिसमें अनुभूत अर्थ को स्मृति होती है, तिस जगह संस्क उद्बोधक चिन्तवन है। इस रीति से सम्बन्ध-ज्ञानादिक, उद्बोध-द्वारा स्मृति के हेतु हैं। और संस्कार की उत्प यका चिन्तवन करे, | जगह संस्कार का सम्बन्ध-ज्ञानादिक, संस्कार कार को उत्पत्ति द्वारा Scanned by CamScanner

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