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द्रव्यानुभव-रत्नाकर।]
[१८३ त्व और कपाल-संयोग घटपद के वाच्य नहीं, क्योंकि जिस पदकी
में शक्ति होय तिस पदका सो अर्थ वाच्य कहाता है। केवल तिमें शक्ति है, इसलिये केवल व्यक्ति ही वाच्य है। इसरीतिसे इन सोशका-समाधान के साथ अनेक प्रन्थकारोंने अपने जरे २ भभिप्राय दिखाये हैं। सो एकांतो प्रन्थ बढ जानेके भयसे, दूसरा क्लिष्ट बहुत है, इसलिये जिज्ञासुके समझने में कठिन होजाय, इस भयसे भी नमूना मात्र दिखाया है । इसी तरह लक्षणावृत्तिमें भी अनेक तरह के इन लोगों के वादविवाद हैं, सी भी उपर्युक्त कारणोंसे नहीं लिखाया। . .. अब पाठकगण इनके उपर लिखे हुए लेखको देखकर बुद्धिपूर्वक विचार करें कि नैयायिक तो शब्द में ईश्वरकी इच्छारूप शक्ति मानते हैं,
और मीमांसकके मतमें शक्ति नाम: कोई भिन्न पदार्थ है, और व्याकरण मतमें अथवा पतंजलिके मतमें वाच्य-वाचकभावका मूल जो पद-अर्थका तादात्म्य-सम्बन्ध सो ही शक्ति है। इस रीतिसे इनके इस शब्द-निरूपणमें अनेक विवाद है। और इनमें भी एक २ मतके अनेकर आचार्य भपनी २ बुद्धिविचक्षणता दिखाने के वास्ते जुदी २ प्रकिया दिखागये हैं। जब इन लोगोंमें आपसमें ही विवाद चल रहा है तो फिर इस शब्दप्रमाणसे दूसरे जिज्ञासुको बोध क्योंकर करावेंगे? इन सब मतोंके मंतव्य पदार्थोमें अनेक तरहके विसंवाद हैं, जिसका संक्षिप्त निरूपण मैंने स्याद्वादानुभवरत्नाकरके दूसरे प्रश्नके उत्तर में दिखाये हैं, सो यहांसे जिज्ञासुको देखना चाहिये। .
अब मैं इन विवेकशून्य बुद्धि विचक्षणों की बातोंका झगड़ा छोड़कर शुद्ध, सर्वज्ञ, वीतराग, जगद्गुरु, जगबंधु, जगदुपदेशदाता, पदार्थको पथावत् कहनेवाले, जिनेश भगवान के शालानुसार शम्द प्रमाण कहता है। यद्यपि इस वीतराग सर्वज्ञदेव के भी मतमें काल (हुंडावसर्पिणी) क दोषले अनेक अव्यवस्था हो गई है, और वर्तमान में भी दिगम्बरखताम्बर दो आम्नाय है। तिसमें भी दिगम्बरियोंमें तो तेरहपन्थी, पन्थी, गुमानपन्थी आदि भेद हैं, और श्वेताम्बर माम्नायमें भी यती,
", दुढ़िया, (बाइस टोला), तेरहपन्थी, गच्छाविक, भनेक भेद है, Scanned by CamScanner