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द्रव्यानुभव - रत्नाकर । ]
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संज्ञि-पंचेन्द्रिय अर्थात् मनवाले मनुष्योंका जो संकल्प-विकल्प अर्थात् जैसी २ जिसके मन में वासना अथवा विचार होय उसको जो यथावत् जाने उसका नाम मनपर्यवज्ञान हैं, क्योंकि दूसरेके मनकी बातको जानना उसीका नाम मनपर्यव ज्ञान है । सो ढाई द्वीप अर्थात् जम्ब द्वीप, घातको खण्ड, और आधा पुष्करावर्त, इस अढ़ाई द्वीपके मनवाले मनुष्यों के मनकी बातको सम्पूर्ण जाने और जो आगे कहा जानेवाला केवलज्ञान को उत्पन्न करके ही नाश पावें उसको तो विपुलमति मनपर्यव ज्ञान कहते हैं, और थोड़ेसे मनुष्योंके मनकी बात जाने तथा विना ही केवलज्ञान उत्पन्न किये नाश पावे उसको ऋजुमति मनपर्यव ज्ञान कहते हैं। इस रीति से श्रीवीतराग सर्वज्ञदेवने अपने ज्ञानमें देख कर देशप्रत्यक्ष ज्ञानका सिद्धान्तोंमें वर्णन किया है। अब सर्वप्रत्यक्ष ज्ञान जिनमत में उसको कहते हैं कि समस्त ज्ञानावरणादिक चार कर्मको क्षय करके जो ज्ञान उत्पन्न होय उसका नाम सर्वप्रत्यक्ष अतीन्द्रिय ज्ञान है । उसीको केवलज्ञान कहते हैं । उसे सर्वप्रत्यक्ष ज्ञानमें मुख्यतः आत्मज्ञान - अपने आत्मस्वरूप को देखनेवाले पुरुष का फिर जन्म मरण नहीं होता है। और उसके इस प्रत्यक्ष ज्ञानसे: लोक, अलोक, भूत, भविष्यत् वर्त्तमानमें जैसा कुछ हाल है. तैसा यथावत् मालूम होता है। जैसे अच्छी दृष्टिवालेको हाथमें रक्खा हुआ आँवला दीखता है, तैसे ही उस अतीन्द्रिय केवलज्ञानवालेको जगत्का भाव दिखता है। इसलिये जिनमतमें उसको सर्वज्ञ कहते हैं। इस रीतिसे किञ्चित् प्रत्यक्ष प्रमाणका वर्णन किया ।
परोक्ष-प्रमाण ।
स्मरण
अब परोक्ष-प्रमाणका वर्णन करते हैं—परोक्ष नाम है अस्पष्ट अर्थात प्रत्यक्ष ज्ञानसे मलिन ज्ञानका । इस परोक्षज्ञानके पाँच भेद हैं, एक तो (स्मृति), दूसरा प्रत्यभिज्ञान, तीसरा तर्क, चौथा अनुमान, पाँचवाँ आगम । इसरोतिसे इस परोक्ष प्रमाणके पाँच भेद हैं। सो प्रथम स्मरणका विषय कहते हैं कि, जिस किसी जीवको पिछला
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