Book Title: Dravyanubhav Ratnakar
Author(s): Chidanand Maharaj
Publisher: Jamnalal Kothari

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Page 192
________________ द्रव्यानुभव-रत्नाकर । होता है तब रज्जुत्व धर्म से नेत्र का संयुक्त-समवाय सम्बन्ध ही परन्तु दोष के बल से रज्जुत्व भासे. नहीं, किन्तु रजु में सर्पत्य भासता है, यद्यपि सर्पत्व से नेत्र का संयुक्त-समवाय सम्बन्ध नहीं है, मावि इन्द्रिय के सम्बन्ध बिना ही दोष-बल से सर्पत्व का सम्बन्ध रज में नेत्र से प्रतीत होता है। परन्तु जिस पुरुष को दण्डत्व की स्मृति पूर्व होवे तिस पुरुष को रजु में दण्डत्व भासे है और जिसको सर्पत्व की पूर्व स्मृति होवे तिसको रज में सर्पत्व भासे है। और इन्द्रिय के प्रत्यक्ष वस्तुके ज्ञानमें विशेषण के ज्ञान की हेतुता है । सोही दिखाते हैं कि-जिस जगह दोष-रहित इन्द्रियसे यथार्थ ज्ञान होय उस जगह भी विशेषण का ज्ञान हेतु है । इसलिये रज-ज्ञान से पूर्व रजस्व का ज्ञान होता है । क्योंकि देखो-जिस जगह श्वेत-उष्णीष ( पगडी वाला ) श्वेत-कंचुकवान यष्टिधर ब्राह्मण से नेत्र का संयोग होता है, तिस जगह कदाचित् मनुष्य है ऐसा ज्ञान होता है, कदाचित् ब्राह्मण है ऐसा ज्ञान होता है, कदाचित् यष्टिधर ब्राह्मण है ऐसा ज्ञान होता है, कदाचित् कंचुकवाला ब्राह्मण है ऐसा ज्ञान होता है, कदाचित् श्वेत कंचुकवाला ब्राह्मण है ऐसा ज्ञान होता है, कदाचित् श्वेत-उष्णीष वाला ब्राह्मण है ऐसा ज्ञान होता है, कदाचित् उष्णीषवाला कंचुकवाला यष्टिधर ब्राह्मण है ऐसा ज्ञान होता है, कदाचित् श्वेत-उष्णीषवाला श्वेतकंचुकवाला यष्टिधर ब्राह्मण है ऐसा ज्ञान होता है। इस जगह नेत्र संयोग तो सर्व ज्ञानों का साधारण कारण है, किन्तु शान की विलक्षणता में ऐसा हेतु है कि जिस जगह मनुष्यत्व रूप विशेषण का झाम और नेत्र का संयोग होता है तिस जगह मनुष्य है ऐसा चाक्षुष ज्ञान होता है, जिस जगह ब्राह्मणत्व का ज्ञान और नेत्र का संयोग होता है तिस जगह ब्राह्मण है ऐसा चाक्षष मान होता है, जस जगह यष्टी ( लकड़ी) और ब्राह्मणत्व का ज्ञान और नेत्रसंयोग होता है तिस जगह यष्टिधर ब्राह्मण है ऐसा चाक्षुष भान होता । जिस जगह कंचुक और ब्रामसत्य रूप से विशेषणों का मान का संयोग होता है तिस जगह कंचुकवाला ब्राह्मण है ऐसा Scanned by CamScanner

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