________________
द्रव्यानुभव-रत्नाकर।]
[ १५६ जिसमें प्रत्यक्ष-योग्यता नहीं हैं उसकाप्रत्यक्ष होय नहीं। और जह आश्रय का प्रत्यक्ष होता है तिस जगह संयोग का प्रत्यक्ष साह जैसे दो उँगली सयोगके आश्रय हैं सोजब दोउंगली का चाक्षुष प्रत्यक्ष होता है तब ही सयोग का चाक्षुष प्रत्यक्ष होता हैं, और जब अअली का त्वचा प्रत्यक्ष होवे, तब ही उंगलीके संयोगका त्वचा-प्रत्यक्ष होता है तैसे ही आत्म-मनके सयोगसे आत्माका मानस प्रत्यक्ष होता है निस जगह सयोगका आश्रय आत्मा हैं। इसलिये संयोग का भोमानस प्रत्यक्ष होना चाहिये, किन्तु सयोगके आश्रय दो होते हैं, जिस जगह दोनोंका प्रत्यक्ष होय, वहां संयोग का प्रत्यक्ष होता हैं, जिस जगह एकका प्रत्यक्ष होय और एकका प्रत्यक्षा होय नहीं तिस जगह संयोग का प्रत्यक्ष नहीं होता हैं। । देखिए-जिस जगह दो घट का प्रत्यक्ष होता है तिस जगह तिस घट के संयोग का भी प्रत्यक्ष होता है, और घट की क्रिया से घटआकाश का संयोग होता है, तिस जगह संयोग के आश्रय घट और आकाश दो हैं, उनमें घट तो प्रत्यक्ष है और आकाश प्रत्यक्ष नहीं है, इसलिये उनका संयोग भी प्रत्यक्ष नहीं होता। इस रीतिसे आत्मामनके संयोगके आश्रय आत्मा और मन है। तिसमें आत्माका तो मानस प्रत्यक्ष होता है और मन का नहीं होता है, इसलिये आत्मा-मनके संयोग का मानस प्रत्यक्ष होय नहीं । आत्माका और ज्ञान-सुखादिक कामानस प्रत्यक्ष होता है, और ज्ञान-सुखादिक को छोड़ के केवल आत्मा का भी प्रत्यक्ष नहीं होता है, और आत्मा को छोड़कर केवल ज्ञान-सुखादिक का भी प्रत्यक्ष नहीं होता है, किन्तु ज्ञान, इच्छा, कृति, सुख, दुःख, द्वेष इन गुणों में किसी एक गुण का और आत्मा का मानस प्रत्यक्ष होता है। क्योंकि देखो-मैं जान हूँ, मैं इच्छावाला हूँ, मैं प्रयत्नवाला ६) में सुखी हूँ, मैं दुखी हूँ, मैं द्वषवाला हूं, इसरीतिसे किसीगुण का
५ करता हुआ आत्मा का मानस प्रत्यक्ष होता है। इसलिये इन्द्रिय अन्य प्रत्यक्ष-प्रमा के हेतु इन्द्रिय के सम्बन्ध हैं, वे व्यापार हैं, इन्द्रिय
पक्ष प्रमाण है, इन्द्रिय-जन्य साक्षात्कार-प्रत्यक्ष-प्रमा फल है। Scanned by CamScanner