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[द्रव्यानुभव-रत्नाकर।
देत-समवाय सम्बन्ध है।
१५८] तैसे ही मनका शानत्वादिक से मन-संयुक्त-समवेत-समवाय, क्योंकि मन-संयुक्त आत्मामें समवेत जो ज्ञानादिक, तिसमें शाम का समवाय सम्बन्ध है । तैसे ही आत्मामें सुखाभाव और दाखामा प्रत्यक्ष होता है, तिस जगह भी मन-सम्बद्ध-विशेषणता सम्बन्ध क्योंकि मनसे सम्बद्ध कहिये संयोगवाला जो आत्मा, तिसमें सुखा भाव और दुःखाभाव का विशेषणता सम्बन्ध है। और सुखमें दुखत्वअभाषका प्रत्यक्ष होता है तिस जगह भी मनसे संयुक्त-समवाय-सम्बन्ध वाला सुख है, क्योंकि मनसे संयुक्त कहिये संयोगवाला जो आत्मा, तिसमें सुखादिक गुणका समवाय सम्बन्ध है । और सुखादिकमें दुखत्वाभावका विशेषणता संबंध है। क्योंकि अभाव का विशेषणता सम्बन्ध ही होता है। इस रीतिसे अभावसे मानस प्रत्यक्ष का हेतु ( कारण) मन-सम्बद्ध-विशेषणता सम्बन्ध एक ही है, क्योंकि जिस जगह आत्मामें सुख-अभावादिकका प्रत्यक्ष होता हैं तिस जगह संयोग संबन्ध से मन-सम्बद्ध जो आत्मा, तिसमें सुख-अभावादिका विशेषणता सम्बन्ध है। और जिस जगह सुखादिक में दुःखत्व-अभावादिकका प्रत्यक्ष होता है तिस जगह संयुक्त-समवाय-सम्बन्धसे मन सम्बन्धवाले सुखादिक हैं। उनमें किसी जगह तो साक्षात् सम्बन्ध मन-सम्बद्ध में और कहीं परम्परा सम्बन्धसे मन-सम्बद्ध में अभी विशेषणता सम्बन्ध है।
इसीरीतिसे मानस प्रत्यक्षके हेतु चार ही सम्बन्ध हैसंयोग, २ मन-संयुक्त-समवाय, ३ मन-संयुक्त-समवेत-स मन-सम्बद्ध-विशेषणता। मानस प्रत्यक्षके चार ही सम्बन्ध हेतु है, सम्बन्ध रूप व्यापारवाला असाधारण कारण म इस लिये प्रमाण है, और आत्म-सुखादिक का मानसकप प्रमा फल है। जैसे आत्म-गुण सुखादिकके प्रत्यक्षका समवाय सम्बन्ध, है तैसे ही धर्म, अधर्म, संस्कारादिक गुण है। इसलिये उनसे मनका संयुक्त-समवाय सम्ब
धमोदिक गुण प्रत्यक्ष योग्य नहीं है, इसलिये धर्मादिकका Scanned by CamScanner
धस
अभावका
मन
समवाय,४ ' हा सम्बन्ध-व्यापार कारण मन करण है, का मानस-साक्षात्कार * प्रत्यक्षका हेतु संयुक्त सस्कारादिक भी आत्माके वाय सम्बन्ध तो है, परन्तु धमोदिककामानस प्रत्यक्ष