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द्रव्यानुभव-रत्नाकर।]
[१५५ सना इन्द्रियसे प्रत्यक्ष होता है, तिस जगह फल और रसना योग सम्बन्ध है, क्योंकि रसना-संयुक्त फल है, तिसमें रसगुका समवाय होनेसे रसके रसना-प्रत्यक्ष में संयुक्त-समवाय सम्बन्ध
सो व्यापार है। क्योंकि संयुक्त-समवाय सम्बन्ध में जो समवाय सम्बन्ध है सो तो नित्य है, रसना-जन्य नहीं, परन्तु संयोग अंश रसनाजन्य है। और रसना-इन्द्रिय-जन्य जो रसका रसन-साक्षात्कार, निसका जनक है, इसलिये व्यापार है। तिस व्यापारवाले रसना प्रत्य
का असाधारण कारण रसना इन्द्रिय हैं, इसलिये करण होनेसे प्रमाण है और रसना-प्रमा फल है। तैसे ही रसमें रसत्व-जातिका • और मधुरत्व, अम्लत्व, लवणत्व, कटुत्व, कषायत्व, तिक्तत्व रूप षट् धर्मका रसना इन्द्रियसे रसन-साक्षात्कार होता है, तिस जगह रसनासे फलादिक द्रव्यका संयोग है, तिस द्रव्यमें रससमवेत होता है। इस रीतिसे रसना-संयुक्त जो द्रव्य तिसमें समवेत कहिये समवाय सम्बन्धसे रहनेवाला, सो रस है, तिसमें रसत्वका और रसत्वके व्याप्य जो मधुरत्वादिक, तिसका समवाय होनेसे रसना-संयुक्त-समवेतसमवाय सम्बन्ध है। तैसे ही फलके मधुर रसमें अम्लत्व-अभावका रसनाप्रत्यक्ष होता है, तिस जगह रसना इन्द्रियका अम्लत्व-अभावसे स्वसम्बद्ध विशेषणता सम्बन्ध है, क्योंकि संयुक्त-समवाय सम्बन्धसे रसना-सम्बद्ध मधुर रस, तिसमें अम्लत्व-अभावका विशेषणता सम्बन्ध है, इसलिये रसना इन्द्रियका अम्लत्व-अभावसे संयुक्त-समवेतविशेषणता सम्बन्ध है। इस तरह रसना इन्द्रियसे जन्य रसन-प्रत्यक्षके हेतु तीन ही सम्बन्ध हैं।
तैसे ही जिस जगह घ्राणज प्रत्यक्ष-प्रमा होती है, तिस जगह भी पाणके विषयसे तीन ही सम्बन्ध हेतु हैं, एक तो घाण-संयुक्त
वाय, दूसरा घ्राण-संयुक्त-समवेत-समवाय, तीसरा घ्राणबद्ध-विशेषणता। प्राण इन्द्रियसे भी द्रव्यका तो प्रत्यक्ष होय हो, किन्तु गन्धगुणका प्रत्यक्ष होता है। जो द्रव्यका प्रत्यक्ष होता, तो
का संयोग सम्बन्ध प्रत्यक्षमें करण होता। किन्तु द्रव्यका प्रत्यक्ष
सम
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