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द्रव्यानुभव-रखाकर ।]
[ १२३ कि जब नाम, आकार, द्रव्य, बस्तुका तो मोजद है, परन्त उसमें मुख्य लक्षण वा स्वभावसे उसको पहचाना जाय सो ही उसका
है। इसलिये स्वभाव भी बस्तुका स्वयधर्म ठहरा। इस से चारों निक्षपा बस्तुका स्वयधर्म है। ..... सो अब इसको लौकिक द्रष्टान्त भी देकर समझाते हैं कि-किसीपुरुष कहाकि 'घट' लाओ। तब उस लानेवालेने 'घट, ऐसा नाम सुना तब दोघट, लेमेकोचला, तो जिस कोठारमें 'घट, रक्खा था, उसमें अन्य भी अनेक तरह की वस्तु रक्खी थी, सो उन सर्व बस्तुओंमेंसे उसका आकार देखनेसे प्रतीत हुआ कि कम्बूप्रोवादिकवाला घट, यह है ।। तब उसका द्रव्य भी देखा कि यह कच्चा है, अथवा पक्का है, लाल है, वा काला है, इनतीनोंके दखनेसे प्रतीत होगया कि यह जल भरने वाला है, इसलियेउसमें जल रक्खा जायगा! यह भावभी उसमें प्रतीत हो गया। इसरीतिसे जो यह घट का नाम, आकार, द्रव्य और भाव स्वयधर्म न होता तो उस कोठारमें सब वस्तु रक्खीहुईमेंसे. एक घटको कदापि न लाय सक्ता । इसी रीतिसे जो कोई वस्तु कहीं से लानी होयतो प्रथम उसका नाम लेगा तो वो वस्तु मिलेगीजब वहवस्त मिलेगी तो उसका आकार, द्रव्य और भाव देखना ही होगा। इसलिये यह चारो निक्षेपा बस्तुका स्वयधर्म है। जो . वस्तुका नामादि स्वयधर्म न होता तो जितने मतवाले है वो उस नामादि लेकरके जुदे २ पदार्थ न कहते। और उनके मतादिक भी न चलते, और सर्व मतावलम्बियोंमें आपसमें वाद विवाद भी न. हाता। कदाचित् तुम ऐसा कहो कि वेदान्तमतवाला एक ब्रह्मके. सिवाय दूसरा कुछ नहीं कहता है। तो हम कहते हैं कि ब्रह्म, ऐसा .
तो वो भी लेता है, तब नामादि चार निक्षेपा बस्तुके स्वयधर्म सिद्ध हो गये। ॥ अब इन चारो निक्षेपोंका किंचित् वर्णन करते हैं।
नामनिक्षेप। प्रथम नामनिक्षेपाको कहते हैं। सो उस नामनिक्षेपाके दो भेद
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