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[ द्रव्यानुभव-रत्नाकर
१३६ ] ___ अब इन सातों नयों को जिस रीतिसे “श्री अनुयोग द्वार सत्र दृष्टान्त देकर उतारा है उसी रोतिसे उतार कर दिखाते हैं कि-एक ने दूसरे पुरुषसे पूछा कि तुम कहां रहते हो ? तब वह बोला कि मैं लोक में रहता हूँ। तब उसने कहा कि भाई लोकके तीन भेद हैं-एक तो अधो (नीचा) लोक, दूसरा ऊर्ध्व (ऊंचा) लोक, तीसरा तिरछा अर्थात् माय लोक, इसलिये इन तीनोंमें से तूं किस लोकमें रहता हैं ? तब वह बोला कि तिरछे अर्थात् मध्यलोक में रहता है। फिर उसने पूछा कि भाई! मध्यलोकमें तो असंख्याते द्वीप, समुद्र हैं तूं किस द्वीपमें रहता है ? तब वह बोला कि मैं जम्बूद्वीपमें रहता हूँ। फिर उसने पूछा कि भाई जम्बूद्वीपमें क्षेत्र बहुत हैं तं किस क्षेत्र में रहता है ? तब वह बोला कि मैं भरतक्षेत्रमें रहता हूं। फिर उसने पूछा कि भाई भरतक्षेत्रमें तो देश बहुत हैं, तं किस देश में रहता है ? तब उसने कहा कि मैं अमुक देशमें रहता है। फिर उसने पूछा कि भाई! उसदेशमें तो ग्राम,नगर बहुत हैं तं किस गांव या नगर में रहता है ? तब उसने कहा कि मैं अमुक नगरमें रहता हूँ। फिर उसने पूछा कि भाई! उस नगरमें तो मुहल्ला (वाड़े) अथवा ग्वाड (वास) इत्यादिक होते हैं तूं किस मुहल्लामें रहता है ? तब उसने कहा कि मैं अमुक मुडल्ला में रहता है। फिर उसने पूछा कि भाई उस मुहल्लामें तो घर बहुत हैं तं किस घरमें रहता है ? तब वह बोला कि मैं अमुक घरमें रहता हूं। यहां तक तो नैगमनय जानना। - अब संग्रहनयवाला बोला कि तं कहां रहे है ? तब वो बोला किम अपने शरीर में रहता है तब व्यबहार नयवाला कहने लगा कि मैं अपन बिछौना(आसन)पर बैठा हौं इस जगह रहता ह। तब ऋजुसूत्रनयवाला बोला कि मैं अपने असंख्यात प्रदेशमें रहता ह। तब शब्दनयवाला बोला कि मैं अपने स्वभावमें रहता ह। तव समभिरूढ़नयवाला कि मैं अपने गुणमें रहता हूँ। तब एवंभूत नयवाला बोला कि शान, दर्शनमें रहता हू। इस रीतिसे (७) नयके ऊपर दृष्टान्त
(प्रश्न) आपने जो सातो (७) नय उतारा जिसमें ऋजुसूत्र तो जुदा २ अंश प्रतीत हुआ, परन्तु शब्द, साभिरूड, एक
मैं अपने
नय तक
भरूह, एवंभूतनयमें जो
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