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दुव्यानुभव-रत्नाकर । ]
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इस रीति से त्वचा प्रत्यक्षमें चार ही सम्बन्ध हेतु है- एक तो व संयोग, दूसरा त्वक्-संयुक्त-समवाय, तीसरा त्वक्-संयुक्त-समवेत. समवाय, चौथा त्वक्-समवेत - विशेषणता । त्वक्से सम्बन्धवालेको स्व-सम्बद्ध कहते हैं। जिस जगह कोमल दुव्यमें कठिनः स्पर्शका अभाव है, तिस जगह त्वक्के संयोग सम्बन्धवाला कोमल द्रव्य है; तिस त्वक्-सम्बद्ध कोमल द्रव्यमें कठिन स्पर्श - अभावका सम्बन्ध स्पर्श ही है। जिस जगह स्पर्शमें रूपत्व - अभावका प्रत्यक्ष होता है, तिस जगह त्वक्का स्पर्शसे संयुक्त-समवाय सम्बन्ध है, सो त्वक्से, संयुक्त समवाय-सम्बन्धवाला होनेसे त्वक्-सम्बद्ध स्पर्श है, तिसमें रूपत्वअभाषका विशेषणता सम्बन्ध है । इस रीति से त्वचा - प्रमाके हेतु संयोगादिक चार सम्बन्ध हैं ।
वैसे ही चाक्षुष प्रमाके हेतु भी चार सम्बन्ध हैं । सो ही दिखाते हैं- एक तो नेत्र- संयोग, दूसरा नेत्र - संयुक्त समवाय, तीसरा नेत्र-संयुक्त समवेत - समवाय, चौथा नेत्र - सम्बद्ध विशेषणता । ये चार सम्बन्ध हैं वे ही व्यापार हैं। जिस जगह नेत्रसे घटादिक दूव्यंका चाक्षुष प्रत्यक्ष होता है तिस जगह नेत्रकी क्रियाले द्रव्यके साथ संयोग सम्बन्ध है, सो संयोग नेत्र-जन्य है, और नेत्र-जन्य जो चाक्षुष प्रमा, उसका जनक है, इसलिये व्यापार है। जहां नेत्रसे द्रव्यकी घटत्वादिक जातिका और रूप-संख्यादि गुणोंका प्रत्यक्ष होता है, वहां नेत्र- संयुक्त दुव्यमें घटत्वादिक जाति और रूपादिक गुणोंका समवाय सम्बन्ध है, इसलिये द्रव्यकी जाति और गुणके चाक्षुष प्रत्यक्षमें नेत्र- संयुक्त-समवाय सम्बन्ध है। जहां गुणमें रहनेवाली जातिका चाक्षुष प्रत्यक्ष होता है वहां रूपत्वादिक जातिसे नेत्रका संयुक्तसमवेतसमवाय सम्बन्ध है, क्योंकि नेत्र संयुक्त घटादिकमें समवेत जो रूपादिक उसमें रूपत्वादिकका समवाय है । यद्यपि नेत्रसे संयोग सकल द्रव्यका सम्भवित है तथापि उद्भूत रूपवाले दुव्यले नेत्रका संयोग चाक्षुष प्रत्यक्ष का कारण हैं, और द्रव्यसे नेत्रका संयोग चाक्षुष प्रत्यक्षका हेतु नहीं है। पृथिवी, जल, अझिये तीन ही द्रव्य रूपवाले.
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