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द्रव्यानुभव रखाकर
उदभूत रूप है, इसलिये त्रयणुकका चाक्षषप्रत्यक्ष होता है और स्पर्शक अभावले (नहीं होनेसे ) त्वचा प्रत्यक्ष होय नही। , स्पर्श भी है परन्तु वह स्पर्श उद्भूत नहीं। वायुमें उद्भुत स्पर्श तो। किन्त रूप नहीं है। इसलिये वायुका त्वचा-प्रत्यक्ष तथा चाल प्रत्यक्ष होय नही। इससे यह सिद्ध हुआ कि द्रव्यके चाक्षुष प्रत्यक्ष उभूत रूप हेतु (कारण) है और द्रव्यके त्वचा प्रत्यक्षमें उद्भूत रूप और उभूत स्पर्श दोनों हेतु हैं, क्योंकि जिस द्रव्यमें उद्भूत रूप और
भूत स्पर्श होय, उसका ही त्वचा प्रत्यक्ष होता हैं। जिस व्यका त्वचा प्रत्यक्ष होय उस द्रव्यकी प्रत्यक्ष योग्य जातिका भी प्रत्यक्ष होता हैं। जैसे घटका त्वचा प्रत्यक्ष होय वहां घटमें प्रत्यक्ष योग्य जाति घटत्व है उसका भी त्वचा प्रत्यक्ष होता है। और उस इन्यमें जो स्पर्श, संख्या, परिमाण, संयोग, विभागादिक योग्य गुण हैं उनका और स्पर्शादिकमें स्पर्शत्वादिक जातिका भी प्रत्यक्ष होता है।
और कोमल द्रव्यमें कठिन स्पर्शका अभाव है.और शीतल जलमें ऊष्ण स्पर्शका अभाव है उसका भी त्वचा प्रत्यक्ष होता है। उस जगह पदाकि द्रव्यासे इन्द्रियका संयोग सम्बन्ध होता है, सो क्रिया-जन्य संयोग होता है। दो द्रव्योंका संयोग होता है। त्वक् इन्द्रिय वायुके परमाणुसे जन्य है, इसलिये वायुरूप द्रव्य हैं, घट भी पृथ्वीरूप द्रव्य है। किसी जगह तो त्वचा इन्द्रियका मोलक जो शरीर, उसकी क्रियास त्वत्-घटका संयोग होता है और किसी जगह घटकी क्रियासे त्व वटका संयोग होता है, और किसी जगह दोनोंकी क्रियाले संयोग होता है।.. नेबमें तो. गोलकको छोड़कर केवल इन्द्रियो । होती है, किन्तु त्वक् इन्वियमें गोलकको छोड़कर स्वतन्त्र कदापि होय नही। इसलिये त्वक इन्दियका गोलक जो उसकी क्रिया वा घटादिक, विषयकी क्रिया से अथवा व क्रियाले स्वका घटादिक द्रव्यसे संयोग होय, तब त्वचा ज्ञान । उस जगह त्वचा-प्रत्यक्ष-प्रमा फल है, त्वक इन्द्रिय कर वनियका घासे सयोग व्यापार है।योंकि त्वक् और घटक
क्रया
शा
स. अथवा दोनों की
त्वचा ज्ञान होता हैं। कद्रिय करण है, तला त्वक और घरको सयोगाके
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