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द्रव्यानुभव-रत्नाकर।
[१४६ की प्रत्यक्ष योग्य स्पर्श ये दोनों होय उस द्रव्यका त्वचा प्रत्यक्ष होता है। वायुमें स्पर्श है और रूप नहीं है। इसलिये वायुका त्वचाप्रत्यक्ष होय नहीं किन्तु वायुके स्पर्शका तुक् इन्द्रियसे प्रत्यक्ष होता है, सो स्पर्शके प्रत्यक्षसे वायुका अनुमिति (अनुमान) ज्ञान होता है। - मीमांसाके मतमें वायुका प्रत्यक्ष होता है। उसका ऐसा अभिप्राय है कि प्रत्यक्ष योग्य स्पर्श जिस द्रव्यमें होय तिस द्रव्यका त्वचा प्रत्यक्ष होता है, क्योंकि तुक्-इन्द्रिय-जन्य द्रव्यके प्रत्यक्षमें रूपकी कुछ अपेक्षा नहीं, केवल स्पर्शको अपेक्षा है। जैसे द्रव्यके चाक्षुष प्रत्यक्षमें उद्भूत काको अपेक्षा हे, स्पर्शकी नहीं ; क्योंकि यदि द्रव्यके चाक्षुष प्रत्यक्षमें उद्भूत स्पर्शकी अपेक्षा होय तो जिस द्रव्यमें दीपक अथवा चन्द्रकी प्रभा (ज्योति ) से उद्भूत स्पर्श नहीं हैं तिसका चाक्ष ष प्रत्यक्ष नहीं होना चाहिये और चाक्षुष प्रत्यक्ष होता है। ऐसे ही त्रयणुको स्पर्श तो है, किन्तु उद्भूत स्पर्श नहीं है, इसलिये त्वचा प्रत्यक्ष नहीं होता, केवल चाक्षुष प्रत्यक्ष होता है। इस प्रकार जैसे केवल उद्भूत-रूपवाले द्रव्यका चाक्षुष प्रत्यक्ष होता है तैसे ही केवल उद्भूत-स्पर्शवाले व्यका त्वचा-प्रत्यक्ष होता है । सो वायुमें रूप तो नहीं है किन्तु उद्भूत स्पर्श है, इसलिये चाक्षुष प्रत्यक्ष वायुका होय नहीं किन्तु त्वचा प्रत्यक्ष होता है। सर्व लोगोंको ऐसा अनुभव भी होता है कि वायुका मेरेको त्वचा से प्रत्यक्ष होता है। इसलिये वायुका भी त्वचा इन्द्रियसे प्रत्यक्ष है। इसमें कुछ सन्देह नही। इस रीतिसे भी मीमांसा मतवाला कहता है।
परन्तु न्याय सिद्धान्तमें वायुका प्रत्यक्ष नहीं होता है, बल्कि पृथ्वी, जल, तेज (अग्नि) में भी जहां उद्भूत रूप और उद्भूत स्पर्श है, उसका ही त्वचा प्रत्यक्ष होता हैं औरोंका नहीं होता, क्योंकि प्रत्यक्ष योग्य जो कप और स्पर्श सो उद्भूत कहाते हैं। जैसे प्राण, रसना, नेत्रमें रूप भौर स्पर्श दोनों हैं, परन्तु उद्भूत नहीं, इसलिये पृथ्वी, जल, तेज, कप तीन इन्द्रियोंका भी त्वचा-प्रत्यक्ष और चाक्षष-प्रत्यक्ष होय नहीं। क्योकि देखो-जो भरोखादार (रोशनदार) मकानमें मोखा हैं, उसमें
॥ परम सूक्ष्म रज प्रतीत होता है सो ऋयणुक रूप प्रथिवी है। उसमें Scanned by CamScanner