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च्यानुभव-रत्नाकर। गाहक अनित्य शुद्ध पर्यार्थिक” जैसे एक समयमें पर्याय विनशे है उस विनाशका प्रति पक्षी लेवे परन्तु ध्रुवताको गौन करके देखे नहीं इसरोतिसे तीसरा भेद हुआ, ___ अब चौथा भेद कहते हैं कि “नित्य अशद्ध पर्यार्थिक" जैसे "एक समयमें पर्याय है सो उत्पाद, वय, ध्रुव, लक्षण तीन रूप करके रोदे हैं, ऐसा कहे तो पिणपर्यायका शुद्ध रूपतो किसको कहिये जो सत्ताको दिखावे, परन्तु यहां तो मूल सत्ता दिखाई इसलिये अशद्ध भेद हुआ, इस रीतिसे चौथा भेद कहा। "
अब पांचवां भेद कहते हैं “कर्म उपाधी रहित नित्य शुद्ध “पर्यार्थिक" जैसे संसारी जीवका पर्याय सिद्ध जीवके समान (सरीखा) कहिये, परन्तु कर्म उपाधि भाव बना है सो उसकी विवक्षा न करे, और ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदिक शुद्ध पर्यायकी विवक्षा करे, इसरीतिसे पांचवा भेद कहा।
अब छठा भेद कहते हैं “कर्म उपाधि सापेक्ष अनित्य अशुद्ध "पर्यार्थिक" कि-जैसे संसारमें रहनेवाले जीवोंके जन्म, मरणकी व्याधि है ऐसा कहते हैं, यहां जन्मादिक जीवका पर्याय है सो कर्म संयोगसे है सो अशुद्ध है; इस लिये जन्मादि पर्यायका नाश करनेके वास्ते मोक्षअर्थी जीवपूवर्ते हैं, यह छठा भेद हुआ। इसरीतिसे द्रव्यार्थिक नय भेद समेत कहा।
३-अब नयगम नयको आदि लेकर, ७ नयकी प्रक्रिया दिखाते हैं। प्रथम नयगम नयका अर्थ करते हैं कि सामान्य, विशेष ज्ञानरूप अनेक तरहसे और बहुत प्रमाणसे ग्रहण करे उसका नाम नयगम है, सो इस नयगमके तीन ३ भेद हैं-१ भूत नयगम, २ बर्तमान, ३ आरोप करना, 'इसरीतिसे इसके तीन भेद हैं, जिसमें प्रथम रीतिका उदाहरण देते हैकि जैसे आज दिवालीका दिन है सो आज श्री महावीर स्वामी शिव"पुर (मुक्ति) का राज पाये, यह जो विधि करना अथवा कहना और कल्याणक मानना सो भूत नयगम है, क्योंकि देखो श्री महावीर स्वामी चौथे आरमें ३ वर्ष साढ़े आठ मास बाकी रहे थे तब मोक्ष पधारे
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