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द्रव्यानुभव-रत्नाकर ।
[१०६ तो भविष्यत् कालमें होगा, परन्तु लोग कहते हैं कि आजके दिन श्रीपद्मनाभ प्रभुका जन्म कल्याणक है। इस रीतिसे अनागत कालका आरोप होता है, सो इस अतीत अनागत कालका आरोप वर्तमान कालमें अनेक रीतिसे अनेक पदार्थों में होता है। __ अब चौथा कारण आरोप कहते हैं सो-कारण चार प्रकारका है। १ उपादान कारण, २ असाधारण कारण, ३ निमित्त कारण, ४ अपेक्षा कारण। ये चार कारण है। तिसमें जो निमित्त कारण है उस निमित्तमें जो वाह्यक्रिया अनुष्ठान द्रव्य साधन सापेक्ष अथवा देव और गुरु यह सब धर्मके निमित्त कारण हैं, सो इनको ही धर्म कहना, क्योंकि देखो जेसे श्रीवीतराग सर्वज्ञदेव परमात्मा भव्य जीवोंको आत्म स्वरूप दिखानेके वास्ते निमित्त कारण है सो उस निमित्त कारणको ही भक्तिवश होकर भव्य जीव कहते हैं कि, हे प्रभु ! तूं हमारेको तार तूं ही तरण-तारण है, ऐसा जो. कहना सो निमित्त कारणमें उपादान कारणका आरोप करना हैं, क्यों कि ईश्वर परमात्मा सर्वज्ञदेव तो निमित्त कारण है, और उपादान कारण तो अपनी आत्मा ब्रह्मरूप तारने वाला है, इसका नाम कारण आरोप है। सो इसके भी अनेक रीतिसे अनेक भेद हो जाते हैं। ___अब अंश नयगम कहते हैं कि, जो एक अंश लेकर सर्व वस्तुको मोने उसका नाम अंशनयगम हैं। सो इसके भी जो गुरुकुलबासके बसनेवाले आत्मअनुभव वुद्धिसे अनेक भेद शास्त्रानुसार और अपनो बुद्धि अनुसार करते हैं, इस रीतिसे यह अंशनयगमनय कहा। .. अब सङ्कल्पनयगम कहते हैं सो इस सङ्कल्प नयगमके दो भेद हैं एक तो स्वयं परिनाम रूप, जैसे वीर्य चेतनाका सङ्कल्प होना, इस जगह जुदा जुदा क्षयउपसमभाव लेना हैं। दूसरा कार्यरूप मेद कहते हैं कि, जैसा २ कार्य होय तैसा २ उपयोग होय, सो यह भेद भी दो प्रकारके हैं। एक तो भिन्न आकांक्षावाला (भिन्न अश), दूसरा अभिन्न आकांक्षा.वाला ( अभिन्न अंश)। भिन्नअंश अर्थात् आकांक्षा वाला, खन्दादिक और अभिन्नअंश आकांक्षा यह आत्माका प्रदेश
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