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__ [द्रव्यानुभव-रत्नाकर। अथवा गुणका अविभाग, इत्यादिक सर्व नयगमनयका भेद जानना. इस रीतीसे नयगमनय कहा।
२ संग्रहनय । अब संग्रह नय कहते हैं--कि सत्ताको ग्रहण करे सो संग्रह, अथवा 'एक अंस अवयवका नाम लेनेसे सन बस्तुको ग्रहण करे, जैसे एक द्रव्यका एक अंश गुणका नाम लिया, तब जितने उस द्रव्यके गुण पर्याय थे सो सपको ग्रहण करे उसका नाम संग्रह नय है। . इस संग्रह नयका दृष्टान्त भो देकर दिखाते हैं कि जैसे कोई बड़ा आदमी अपने घरके दर्वाजेपर बैठा हुआ नोकरसे कहे कि दाँतौन (दाँतन) तो लाओ, तब वो नौकर दाँतौन ऐसा शब्द सुन कर दाँतोंके मांजनेका मञ्जन, कैंची, जिभी, पानोका लोटा, रूमाल आदि सब चोज़ ले आया, तो इस जगह विचार करना चाहिये कि उस बड़े आदमीने तो एक दाँतनका नाम लिया था, परन्तु जो दाँतन करनेकी सामग्री थी उस सबका संग्रह हो गया। तैले ही द्रव्य ऐसा नाम कहनेसे द्रव्यके जो गुण पर्याय थे सबका ग्रहण हो गया। - इस रीतिसे संग्रहनयकी व्यवस्था कही। सो उस संग्रह नयके दो भेद हैं-१ सामान्य संग्रह, २ विशेष संग्रह। सो सामान्य संग्रहके भी दो भेद हैं। १ मूलसामान्यसंग्रह, २ उत्तरसामान्यसंग्रह, सो मूलसामान्यसंग्रहके तो अस्तित्वादिक ६ भेद हैं। और उत्तरसामान्यके दो भेद हैं। एक जाति सामान्य, २ समुदाय सामान्य । जाति सामान्य तो उसको कहते हैं कि, जैसे एक जाति मात्रको ग्रहण करे। और समुदाय सामान्य उसको कहते हैं कि, जो समूह अर्थात् समुदाय सबको ग्रहण करे। अथवा उत्तर सामान्य चक्षुदर्शन अचक्षुदर्शनको ग्रहण करता है। और मूल सामान्य हैं सो अवधि दर्शन तथा केवलदर्शनको ग्रहण करता है। अथवा इस सामान्य, विशेषका ऐसा भी अर्थ होता है कि, द्रव्य ऐसा नाम लेनेसे सवं अव्योंका संग्रह हो गया, इसका नाम सामान्य संग्रह हैं। और केवल
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