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[द्रव्यानुभव-रत्नाकर।
१०८] पुरुषने पायली लानेका नाम कहा कि पायली लेनेको जाता है, तो पायली उस जगह कुछ बनी हुई नहीं रखी, केवल काष्ट लेनेके ही वास्ते जाता है, सो काष्टका भी ठिकाना नहीं कि किस जगहसे काष्ट लावेगा, परन्तु मनमें ऐसा चिन्तवन किया कि मैं पायली लाऊ, इस लिये उसने पायली कहा।
इस रीतिसे नयगमनय वाला मानता है क्योंकि देखो इस नयगमनयसे ही सर्व जीव सिद्धके समान है, क्योंकि सर्व जीवके आठ रुचक प्रदेश निर्मल सिद्धके समान है, इसलिये नयगमनय वाला सर्व जीवोंको सिद्ध मानता है। सो उस नयगमनयके ३ भेद हैं १ आरोप, २ अन्श, ३ सङ्कल्प और किसी जगह चौथा भेद भी 'उपचरित' ऐसा कहा हैं। - इस रीतिसे इसके चार भेद हैं सो अव इन भेदोंके जो उत्तर भेद
और भी होते हैं उनको दिखाते हैं कि आरोपके चार भेद हैं १ दृश्य आरोप, २ गुण आरोप, ३ काल आरोप, ४ कारण आरोप। . सो द्रव्यआरोपका वर्णन करते हैं कि दव्य तो नहीं होय और उसमें दुव्यका आरोप करना उसका नाम द्रव्य आरोप है, जैसे कालको दुव्य कहते हैं सो काल कुछ दव्य नहीं है, क्योंकि जीव अजीव अर्थात् 'पञ्च अस्तिकायका प्रणमन धर्म है, सो वो अगुरुलघु पर्याय है, सो उसको आरोप करके काल द्रव्य कहते हैं, परन्तु यह काल पञ्चअस्ति कायसे जुदा पिण्ड रूप व्य नहीं है, तौभी इसको द्रव्य कहते हैं, इसका नाम दुव्य आरोप हैं।
दूसरा भेद कहते हैं कि व्यके विषय गुणका आरोप करना, जैसे ज्ञान गुण है, परन्तु ज्ञान है सो ही आत्मा है, इस जगह ज्ञानको आत्मा कहा, इस रीतिसे गुण आरोप हुआ। ___ अब काल आरोप कहते हैं-सो उसके भी दो भेद हैं एक तो भूत, दूसरा भविष्यत्, सो ही दिखाते हैं कि जैसे श्रीमहावीर स्वामीका निर्वाण हुए बहुत काल हो गया, परन्तु वर्तमान कालमें दिवालीके दिन लोग कहते हैं कि आज श्रीवीरप्रभुजीका निर्वाण है, यह अतीत कालका आरोप वर्तमान कालमें किया। तैसही श्रीपद्मनाभ प्रभुका जन्म
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