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ज्यानुभव-रत्नाकर । परिणाम सो भी निश्चय नयका अर्थ जानना, जैसे “आया सम्माईए आया सम्माई अस्स अट्ठ" इस रीतिसे जोर लोक अतिक्रान्त अर्थ होय सो २ निश्चय नयका अर्थभेद होय, तिससे लोकउत्तर अर्थ भावना आवे, और जो व्यक्तिका भेद दिखावे सो व्यवहार नयका अर्थ है। क्योंकि देखो जैसे “अनेकानी द्रव्यानी” अथवा “अनेका जीवाः" इस रीतिसे व्यवहार नयका अर्थ होता है, यदि उक्त” “तिथ्थयणएणं पंच वन्नभमरे व्यवहारनाएनं कालवन्ने" इत्यादिक सिद्धान्तोमें प्रसिद्ध है, अथवा निम्नोक्त कारण इन दोनोंको अभिन्न पना कहे, सो भी ब्यबहार नयका उपचार है, जैसे “अयुरधृतं” इत्यादिक कहे, अथवा परबत (इंगर ) जलता है, इत्यादिक व्यवहारभाषा अनेक रूपके प्रयोग होते हैं। इसरोतिसे निश्चय नय और व्यवहार नयके अनेक अर्थ होते हैं, तिनको छोड़कर थोड़ासा भेद उस देवसेन दिगम्बरी जैनाभासने नयचक्र प्रथमें रचना करके अपने जैसे बाल जीवोंको बहकानेके वास्ते बनाया है, परन्तु सर्व अर्थ निर्णय उसको न आया, जैनमतसे विपरीत अर्थ दिखाया, श्याद्वादसिद्धान्तका रहस्य न पाया, केवल पंडित अभि मानसे अपने संसारको बधाया, अवग्रहिक मिथ्यात्वके ज़ोरसे सद्गुरु की सेवामें न आया, इसलिये शुद्ध जिनमत भी नपाया, केवल जैनी नाम धराया, यथावत शुद्ध नयार्थ स्वेताम्बर जिनमतमें पाया, इसी लिये आत्मार्थियोंने इन्हींके ग्रंथोंका अभ्यास बढ़ाया, दिगम्बर जैना भासके प्रथोंको छिटकाया। इस रीतिसे किंचित् इन दिगम्बर जैना भासोंका कपोलकल्पित नयार्थ इस ग्रंथमें लिखकर बतलाया, अब शुद्ध जिनमत श्याद्वाद नय कहनेको चित्त चाया। इस रीतिसे दिगम्बर मतको नय, उपनय, द्रव्यार्थिक, अध्यात्मभाषा; निश्चय, व्यवहार सर्वका वर्णन किया, और उनका शुद्धाशुद्ध भी दिखाय' दिया।
अब जो शुद्ध जिनमत श्याद्वाद उसकी रीतिसे किंचित् नयका बिस्तार कहते हैं, सो आत्मार्थी इस निम्न लिखत नय विचारको अच्छी तरहसे अभ्यास करें।
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