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द्रव्यानुभव-रत्नाकर ।
[r करते हैं, यह आत्म गुणमें पुद्गल गुणका उपचार जानना; यह दूसरा भेद हुआ। .. अब तीसरा भेद कहते हैं “ पर्याय २ उपचार" जैसे घोड़ा, गाय, हाथी, रथ प्रमुख आत्म द्रव्यका असमान जाति द्रव्य पर्याय तिसक खन्द कहे, सो आत्म पर्यायके ऊपर जो पुद्गल पर्यायका खन्द तिसका उपचार करके कहे, सो “पर्याय २ उपचार" तीसरा भेद हुआ।
' अब चौथा भेद कहते हैं कि “द्रव्यमें गुणका उपचार, जैसे मैं गौर वर्ण हूं ऐसा जो कहे तो 'में, सो तो आत्म द्रव्य है, और जो गौरपन पुद्गलका उज्जलपना सो उपचार, यह चौथा भेद हुआ। ___ अब पाचवां भेद कहते हैं कि “ द्रव्यमें पर्यायका उपचार करे". जैसे मैं शरीरमें बोलता हूँ, तिसमें में सो तो आत्म द्रव्य है। और शरीर सो पुद्गल द्रब्यका समान जाति है इसलिये “द्रव्य पर्याय. उपचार पाचवां भेद हुआ।
- अब छठा भेद कहते हैं कि “गुणमें द्रव्यका उपचार करना - सौ उदाहरण दिखाते हैं कि जैसे कोई कहे कि यह गौर दीखता है, सो आत्मा इसमें गौरपना उद्देश करके आत्म विधान किया, इस लिये गौरतारूप पुद्गल गुण ऊपर आत्म द्रब्यका उपचार सो 'गुणः द्रब्य उपचार' छठा भेद हुआ।
- सातवां भेद कहते हैं कि “पर्याय द्रव्य उपचार " जैसे शरीरको आत्मा कहें, इस जगह शरीर रूप पुद्गल पर्यायके विषय आत्म द्रव्यका उपचार करा, यह सातवां भेद हुआ। ... - अब आठवां भैद कहते हैं कि “ गुण पर्याय उपचार" जैसे मंतिक्षान सो शरीर जन्य है, इस लिये शरीर ही कहना, सो इस जगह मतिज्ञान रूप आत्म गुणके विषय शरीर रूप पुद्गल पर्यायकाउपचार किया, यह आठवां भेद हुआ। ___ अब नवां भेद कहते हैं कि 'पर्याय गुण उपचार' जैसे शरीर मतिज्ञान रूप गुण है, इस जगह शरीर रूप पर्यायके विषय मतिज्ञान. रूप गुणका उपचार किया, यह नवां भेद हुआ।..
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