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[द्रव्यानुभव-रत्नाकर
अवगाहना करे ऐसा
करके वस्तु अलंकृत
६२] शद्धि फिर करके पीछा उस आकाश प्रदेश की अवगाहना , भगवती आदि सूत्रोंमें देखो।
अब पुद्गलका गुण कहते है कि जिस करके वस्त्र अर्थात् शोभायमान देखनेमें आवे तिसका नाम वर्ण कहते है की वर्णके ५ भेद हैं स्वेत, रक्त, पीला, नीला, हरा, कृष्ण, (काला), ये अर्थात् रङ्ग पुद्गलके विषय होते हैं।
(प्रश्न) आपने ५ वर्ण कहे परन्तु नैयायिक छठा विचित्र, माने हैं तो पांच क्योंकर बनेंगे।
(उतर ) भोदेवानु प्रिय इन ५ वर्णीका संयोग होने ही से कटा विचित्र वर्ण उत्पन्न होता है इसलिये उस छोटे रङ्गको सर्वथा भिन्न कहना ठीक नहीं, क्योंकि देखो उन पांच रङ्गसे ही अनेक रङ्ग जुदा २ बन जाते हैं, अथवा यह पांच रंग एक चीज में भी भिन्न २ देखते हैं इसलिए वह विचित्र रंग नहीं किन्तु वेही पांच रंग हैं। इसरीतिसे एक छठा भिन्न क्या अनेक रंग भिन्न २ मानने पड़ेगे तबतो ब्यवस्थाही न बनेगी। इसलिये ५ रंगहो मानना ठीक हैं।
___ अब इस पुद्गलके विषय दो गन्ध हैं, एकतो सुगन्ध अर्थात् जो सब लोगोंको अच्छी लगे, दूसरी दुर्गन्ध अर्थात् सब लोगोंको बुरी लगे।
रस ५ हैं मधुर, (मीठा), आम्, (खट्टा), कषायला, कटु (कड़वा), तिक्त (चरपरा), ये ५ रस हैं।
_ (प्रश्न) आपने ५ रस कहे परन्तु नैयायिक लवण (लोन) का छठा जुदा रस कहता हैं तो ५ क्योंकर बनेगे।
(उत्तर) भो देवानुप्रिय नैयायिकको यथावत ज्ञान न होना केवल तर्क बुद्धिसे कहता है, परन्तु रस ५ हैं, क्योंकि देखो ल छठा रस मानना नहीं बनता, क्योंकि लवण मधुर रसके अन्
सौ लवणका मधुरपना लोकोंमें आवाल गोपालादि सबक प्रसिद्ध हैं, कयोंकि देखो कोई रसोईदार नाना प्रकार तयारे करे और लाड़, जलेबी, शीरा, साबुनी, पेड़ा, कलाकार
र रसके अन्तरगत है पलादि सबको अनुभव
ना प्रकारके भोजन पड़ा, कलाकन्द, गुलाब
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