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[द्रव्यानुभव-राकर।
है। क्योंकि लौकिकमें जीव द्रव्यकाहो सब कर्त्तव्य दीखता है. इस जीवको कर्ता कहा; परन्तु बुद्धि पूर्वक शुद्ध व्यवहारसे छओं का अपने २ परिणामके कर्ता हैं, और अपनी २ क्रिया कर रहे है। अपनो क्रियाको छोड़कर दूसरी क्रिया नहीं करते; क्योंकि देखो सर्व द्रव्य एक क्षेत्रमें रहते हैं और कोई किसीमें मिलता नहीं, जो अपनी परिणामकी क्रिया न करते तो सर्व द्रव्य एक होजाते; सो सर्व अपने २ परिणामसे अपनी २ उत्पादवय ध्रुवकी क्रिया सदासर्वदा कर रहे हैं, इसीलिये श्री वीतराग सर्वज्ञ देवने क्रिया कारित्व द्रव्यत्व' कहकर समझाया। भव्य जीवोंको यथावत बोध कराया, शास्त्र के अनुसार किंचित् स्वरूप हमनेभी जताया, इसीलिये क्रिया कारित्वद्रव्यका लक्षण ठहराया, अब तीसरे लक्षण वर्णन करने का मौका आया, इसजैन धर्मका रहस्य कोई विरलोंने पाया, इसके बिना दूसरी जगह मिथ्यात्व मोह छाया, जैनधर्मके रहस्य विना कुगुरुओंने धकाधन मचाया; केवल ; एकपेट भरना मनुष्य जन्मको गवांया, द्रव्य अनुभव रत्नाकर किंचित् मैंने लिखाया, दुःख गर्मित, मोह गर्भित साधुवने परन्तु साधुपन न दिखाया, द्रष्टिराग बांध भोले जीवोंको लड़ाया, वास्ते बहुमानके कदाग्रह मचाया, समकित न लगी हाथ बहुत संसारको बधाया, इसरीतिसे दूसरे लक्षण का वर्णन किया।
उत्पाद,
तीसरे लक्षणका स्वरूप अब तीसरे लक्षणका वर्णन करते हैं। "उत्पादवय ध्रुवयुक्त द्रव्यत्वं" उत्पाद नाम उपजे, वय नाम विनाश होय ध्रुव नाम हि रहे, यह तीनोंबात जिसमें होय उसका नाम द्रव्य है, सो इस उ वय ध्रुव, दिखानेके वास्ते पेश्तर आठ पक्षका स्वरूप कहते आठ पक्षोंके नाम यह हैं १ नित्य,२ अनित्य, ३ एक, ४ अनेक, ५ ६ असत्य, ७ वक्तव्य, ८ अवक्तव्य। इसरीतिसे नाम कहे, आठो पक्षोंको छओ द्रव्योंके ऊपर जुदा २ उतारकर दिखाते हैं।
'क, ४ अनेक, ५ सत्य,
नाम कहे, अब इन
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