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[ द्रव्यानुभव- रत्नाकर
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अर्थ कह्यो
अर्थ जणाविये, अथवा एक बोध शब्दे, एक बोध अर्थ, एम अनेक भंगा जाणवा, ये रीतें ज्ञान दृष्टिए जगतना भाव देखीये, तेहिज स्पष्ट पणे जणा ववाने आगली गाथा कहें छै ।
इसका विस्तार तो उस दूव्य गुण पर्यायके रासमें देखो, परन्तु इस जगहतो त्रयरूपका किंचित् भावार्थ कहते हैं — कि मुख्य वृति करके तो शक्ति शब्दार्थ कहे तो दूव्यार्थिक नय द्रव्य गुण पर्यायको अभेद प कहे, क्योंकि गुण, पर्यायसे अभिन्न है सो ही दिखाते हैं कि - जैसे मट्टी दुव्यादिकके विषय घट दुव्यकी शक्ति है, परन्तु इनका परस्पर आपस में जो भेद है सो उपचार करके हैं, क्योंकि लक्षणसे जाने, इसलिये द्रव्य भिन्न कम्बुग्रीवादिक पर्यायके विषय घटादिक पदकी लक्षणा माने हैं,. इसलिये मुख्य अर्थ सम्बन्ध तथाविध व्यवहार प्रयोजनके अनुसार लक्षण वृत्ति दुर्घट नहीं है । इसरीतिसे पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षासे मुख्यवृत्ती सर्व दुव्यका गुण, पर्याय भेद कहें, क्योंकि इस नयके मत में मट्टी आदि पदका दुव्य, अर्थ और रूपादि पदका गुण तथा घटादि पदका कम्बू श्रीवादि पर्याय है, परन्तु उपचार करके अथवा लक्षण करके अथवा अनुभव करके अभेद भी माने, जैसे घटादिकमें मट्टी दुव्य अभिन्न है प्रतीत घटादिक पदकी मट्टी आदिक द्रव्यके विषय लक्षणा करके होती है, इसलिये भेद अभेद प्रमुख बहुत धर्मको दुव्यार्थिक अथवा पर्यार्थिक नय ग्रहण करे, उसीके अनुसार मुख्य, अमुख्य प्रकार करके, अथवा साक्षात् सांकेत, अथवा व्यवहित सांकेत, इत्यादिक अनुसारे नयकी वृत्ती ओर नयका उपचार कल्पे है, सो ही दुष्टान्त दिखाते हैं, जैसे गङ्गा पदका साक्षात् सांकेत, अथवा ब्यवहित सांकेत तो प्रवाह रूप अर्थके विषय है, इसलिये पूवाह शक्ति है। अब उसको छोड़के गड़ा तीरपर जो सांकेत करना सो बिवेक सांकेत है, इसीलिये उपचार है। इसरीति से द्रव्यार्थिक नय साक्षात् सांकेत सो तो अभेद है, और शक्तिका भेद है सो व्यबहित सांकेत है; इसीलिये उपचार है, सो पर्यार्थिक नयके
विषय भी शक्ति तथा उपचारसे भेद अभेद जान लेना ।
(पून ) जो नय है सो तो अपने विषयको ग्रहण करे और दूसरे
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