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द्रव्यानुभव - रत्नाकर । ]
किसी चतुर पुरुषको भूख लग रही है, उस वक्त उसको कोई अच्छे २. भोजनके पदार्थ थालमें परोसके आगे रक्खे और उससे कहे कि आप भोजन करो, तब वो पुरुष उस पदार्थमेंसे दो, चार, दस कवर-ग्रास खाय चुके उसवक्त वह जिमाने वाला पुरुष पूछे कि आपने जो पेश्तरका कवा (कवल) (प्रास) (कौर) लिया था उसका जो स्वाद रसना इन्द्री अर्थात् जिह्वाले मालूम हुआ है सो हमको ज्यों कात्यों सुना दीजे, तब वो पुरुष उस भोजनमें खट्टा, मीठा, सलौना; अथवा कषायला, कड़वा, फीका आदि अच्छा बुरातो कहेगा, परन्तु जो उसकी जिह्वाने उस भोजनमें यथावत् जाना है सो कह नहीं सक्ता, यह अनुभव हरएक पुरुषको है, सो जो खट्टा, मीठा, सलौना आदि बचनसे कहना सोतो वक्तव्य है, और जो रसना इन्द्रोने स्वाद जाना और कहनेमें न आयासो भवक्तव्य है । इस रीति की युक्ति संसारी विषय आनन्दमें अनेक तरह की है परन्तु ग्रंथके. बढ़जानेके भय से विस्तार न किया । इस रीतिसे वक्तव्य, अवक्तव्य कहकर आठ पक्ष पूर्ण किया, भव्यजीवोंके वास्ते अंधेरे घरका : दिया करदिया; आत्मार्थियोंने अमीरसपिया, चिदानन्द जान यह : शुद्ध मार्गको लिया ।
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( प्रश्न ) आपने जो “उत्पादवय, ध्रुव युक्त' इति द्रव्यत्व" ऐसालक्षण कहाथा सो उसकातो प्रतिपादन न किया और नित्य अनि-. त्यादि आठ पक्षका वर्णन लिखाया और लक्षणका प्रतिपादन किंचित्. भी न आया, तो लक्षणका नाम क्योंकर लिखाया । इसलिये इस प्रथमें प्रकरण विरुद्ध दूषण होगा, और जिज्ञासु को यथावत.. वोधभी न होगा ।
(उत्तर) भो देवानुप्रिय अभी तेरेको द्रव्यानुयोगके जानने वाले - उपदेश दाता यथावत न मिले और दुःख गर्भित, मोह गर्भित वैराग्यवाले पुरुषोंके संगसे राग, रागिनी, ढाल, चौपाई, चरित्र आदि सुने,. अथवा जो कि गुरुकुलबास बिना आत्म अनुभव सुन्य अपनी बुद्धिकी तीक्षणताले स्याद्वाद सिद्धान्तके अजान कई इस कालमें
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