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[ द्रव्यानुभव-रत्नाकर।
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ही अपनी सन्तान उत्पत्ति करेगी, तो फिर सम्बन्धका ज्ञान क्योंकर बनेगा, अथवा जिस क्षणमें पूर्वदिग् सम्बन्धका ज्ञान होगा । उह पूर्वदिग् सम्बन्ध ज्ञानकी जो क्षण उससे उत्पन्न होगी तो पूर्वदण सम्बन्ध की सन्तान उत्पन्न होगी, कुछ पश्चिम दिग् सम्बन्ध सन्तान की उत्पत्तीका ज्ञान कदापि न होगा, क्योंकि देखो लौकिक प्रत्यक्ष अनुभव सिद्ध सन्तान उत्पत्ती में दृष्टान्त देकर दिखाते हैं कि "देखो जो मनुष्य आदि हैं उनकी सन्तानमें मनुष्य ही उत्पन्न होगा नतुः गाय, भैंस, घोड़ा । अथवा गायकी सन्तानमें गौ आदिकही उत्पन्न होगी, कुछ भैंस घोड़ा आदि न होगा । अथवा अन्न आदिक गेहूकी सन्तानमें गेहूं ही उत्पन्न होगा, नतु चना, मूंग, उईं, आदि । इसरीति से जो चीज है उसकी सन्तानमें वही उत्पन्न होगी यह अनुभव लोक प्रसिद्ध हैं। इसलिये जिस क्षण में जिस बस्तुका तेरेको ज्ञान हुआ है उस क्षणके नष्ट होनेसे उस क्षणमें जो सन्तान उत्पत्ती मानेगा तो उसी वस्तुका ज्ञान होगा, नतु अन्य बस्तुका । इसलिये हे क्षणिक बादी तेरा इस परमाणु विषयमें षट्र्दिग् सम्बन्धका प्रश्न करना तेरे मतानुसार न बना इसलिये तेरेको तेरे ही सिद्धान्त और मत की खबर न पड़ी। तो इस बीतराग सर्बज्ञ देव त्रिकाल दशके स्याद्वाद रूप सिद्धान्तका रहस्य क्यों कर मालूम हो सके । कदाचित् तू कहे कि इस तुम्हारे स्याद्वाद सिद्धान्तका रहस्य क्या है, तो हम तेरेको कहते हैं कि है भोले भाई इस सिद्धान्तका रहस्य ऐसा है कि श्री बीतराग सर्वज्ञ देवने अपने केवल ज्ञानसे देखा कि जिसका दो टुकड़ा न होय उसका नाम परमाणु कहा । इसलिये परमाणुका लक्षण ऐसा कहा कि “परमाणु अविभागीयते” उस अविभागीको निरअन्श भी कहते हैं सो वो परमाणु कुछ बस्तु ठहरी तो वो बस्तु जिस जगह रहेंगी तो चारों तरफसे अलबत्ता घिरेगी, क्योंकि देखो आकाशतो क्षेत्र है और परमाणु रहने वाला क्षेत्रि हैं, तो जब परमाणु आकाशमें रहेगा तो आकाश उस परमाणुके नीचे और ऊपर अथवा चारो दिशासे व्यापक पनेसे रहेगा और परमाणु व्याप्यपनेसे रहेगा, इसलिये उस परमाणु
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