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द्रव्यानुभव-रत्नाकर ।] करना चाहिये कि पूर्व ज्ञान जनकजो क्षण सो तो निरांश हैं, फिर उस अणमें दो अंश की कल्पना करना सिवाय उन्मतोके दूसरा कौन कर सक्ता है। क्योंकि देखो जिस अंश करके कारण सम्बन्ध हैं, तिस निरअंश कारण सम्बन्धमें कार्य सम्बन्ध बने नहीं और जिस अंशमें कार्य सम्बन्ध तिस अन्शमें कारण सम्वन्ध बने नहीं, क्योंकि क्षण तुम्हारा निरअंश है, इसलिये उस निरअंशमें कारण, कार्य दो अंश कल्पना करना अज्ञान सूचक है; इसलिये तुम्हारेको तुम्हारे सिद्धान्त को खबर दिखलाई, तुमने जो प्रश्न किया उसकी युक्ति ठीक न आई, मिथ्यात्वका तजो रे भाई, तुमने जो प्रश्न किया उस प्रश्न की तुम्हारे गलेमें युक्ति पहिराई, इसका जवाब देना भाई। खैर अब दूसरी युक्ति और भी सुनों कि जो तुमने परमाणुमें बिकल्प उठाया कि निरअंश और सश तो तुम्हारा विकल्प नहीं बनता है, क्योंकि जिस क्षणमें परमाणुको निरअंश देखा वो निरअंश देखने की क्षणतो तुम्हारे मतसे नष्ट होगई तो फिर तुम्हारा सअंश देखना क्योंकर बनो, कदाचित् कहो कि सअंश परमाणुका ज्ञान हुआ, तो वो सअंश परमाणके ज्ञान होने की भी क्षण नष्ट होगई, तो वो सम्बन्ध परमाणुसे होनेका ज्ञान किससे हुआ। इसरीतिसे जब पूर्व दिशाका सम्बन्ध परमाणुसे हुआतो उस पूर्व सम्बन्धका जो ज्ञान वो भी उसी क्षणमें नए हुआ, इसरीतिसे पश्चिम, उत्तर, दक्खिन, अधो, और ऊर्द्ध जिसका जिस क्षणमें सम्बन्ध हुआ उस सम्बन्धका ज्ञान उसी क्षणमें नष्ट होगया। और वह सम्बन्ध आपसमें विरोधी हैं, क्योंकि देखो निरअंश और सअंश आपसमें विरोध, ऐसे ही सम्बन्धका विरोध, तैसे हो छओं दिशाका विरोध। इसरीतिसे तुम्हारा क्षणिक विज्ञान बाद होनेसे प्रश्न करनाही नहीं बनता, कदाचित् निर्लज होकर उस क्षणिक विज्ञानकी सन्तान अपेक्षा भी मानों तो भी तुम्हारेको यथावत ज्ञान न होगा। क्योकि देखो जब तुमको निरांश परमाणुका जिस क्षणमें ज्ञान हुआ उस निरअंश मानकी निरअंश २ ही सन्तान उत्पति होगी, अथवा जिस क्षणमें तुमको सअंश ज्ञान होगा, उस सअंश ज्ञान की क्षण भी सअश
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