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[ द्रव्यानुभव-रत्नाकर।
५२] अणु हैं यदि उक्त “लोमागास पएसे इक्के के जेठिया हुइकिका रयणा रासी मिव कालाणु असंख दव्वाणि” इसरीतिसे असंख्याते काल मणु शामिल होय तब एक समय होता है, समयसो पर्याय हैं सो अणुपना सूर्यमण्डल म्रमि लक्षण निमित्त कारण पायकर इकट्ठा मिले है तव समय उत्पन्न होता हैं, जैसे चक्र भ्रमि निमित्त कारणका जोग होनेसे मिट्टीके पिण्डका घड़ा उत्पन्न होता हैं, तैसे ही इस जगह जान लेना। __इसके वास्ते श्वेताम्बर आमना वाला इस दिगम्बरको दूषण देता है कि जो तुम ऐसा मानोगे तो छठा अस्तिकाय होजायगा क्योंकि जिसमें खन्द, देश और प्रदेश हो उसीका नाम अस्तिकाय हैं तो इस जगह भी समय सो खन्द और. द्विविभाग कल्पना रूप देश और काल अणु प्रदेश मानोगे तो विपरीत हो जायगा, क्योंकि अस्तिकायतो सर्वज्ञ देव बीतरागनेतो पांच कहे हैं और काल द्रव्यको अस्ति काय न माननेमें श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनोंकी सम्मति है तो फिर काल द्रव्यमें काल अणुमानना अज्ञान सूचक हैं। सो इसकाल दूब्यकी विशेष चर्चा देखनी होयतो हमारा किया हुआ “स्याद्वादानुभव रत्नाकर के तीसरे प्रश्नोतरमें दिगम्बर आमनायका निर्णय किया है वहांसे देखो इस जगह ग्रन्थ बढ़ जानेके भयसे न लिखा इसरीतिसे चौथा काल दुव्य कहा।
पुद्गलास्तिकाय । अब पांचनवा पुद्गल दूव्य कहते हैं कि जो वस्तु पूरन अथवा गलन धर्म होय उसको पुद्गल दुव्य कहते हैं, क्योंकि देखो कोई एक खन्दके विषय पुद्गल पूरता अर्थात् बढता है, और कोई. एक खन्दके विषय गलन अर्थात् जुदा होता है, इसरीतिसे लौकिक कालादि कारण मिलनेसे होता है, सो यह पुद्गलका स्वभाव है; सो उस पुदगलके ४ भेद हैं एकतो खन्द, २ देश, ३ प्रदेश, ४ परमाणु, सो प्रथम खन्दका अनन्ता भेद हैं, क्योंकि दो प्रदेश इकट्ठा मिले तो द्वय प्रदेशी. खन्द, तीन प्रदेश मिले तो त्रिप्रदेशी खन्द, इस रीतिसे यावत् संख्यात्
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