________________
द्रव्यानुभव-रत्नाकर।]
[१७ मैं तो इस जगह रहू परन्तु मेरे घरका खर्चा क्योंकर चले, तब उसने कहा कि तू इस जगह रह और घरके वास्ते जो खर्चा चाहिये सो भेज दे। तब उस साहूकारके लड़केने घरको तो खर्चा भेज दिया और आप उसी जगह रहने लगा। जब उसके मामाने उस लड़केको थोड़ा थोड़ा वाणिज्य व्यापारमें लगाया और जवाहिरातको परीक्षा उससे कराने लगा, तब वह लड़का थोड़े ही दिनोंमें जवाहिरातकी परीक्षामें ऐसा चतुर हुआ कि सब लोग उसकी सलाहसे जवाहिरात लिया बेंचा करते, और वह साहूकारका लड़का हजारों रुपये व्यापारमें पैदा करने लगा। एक दिन वह लड़का जब दुकानपर आया तब उसके मामाने उसको एक रत्न दिखाया। वह लड़का रत्नको देखकर कहने लगा कि मामाजो इसमें तो आपने धोखा खाया। उसने उस रत्नके भीतर दाग बताया, उस दागके देखनेसे मामा भी शर्माया और बुद्धिसे विचारने लगा कि अब यह सब तरहसे होशियार हो गया और कहो न ठगावेगा। ऐसा विचार कर चित्तमें खुशी हुआ और दो चार दिनके बाद कहने लगा कि भानजा वह जो तेरे पास रत्न है सो तू घरसे लेआ एक व्यापारी आया है। अभी अच्छे दाममें उठ जावेंगे। तब वह घरमें रत्न लेनेको गया और उस डिब्बीको खोलकर रत्नोंको देखने लगा तो उस डिब्बीमें चार कांचके टुकड़े निकले। उनको देखकर चित्तमें सुस्त हो गया और मनमें कहने लगा कि पिताने तो रत्न बताये थे परन्तु यह तो कांचके टुकड़े हैं, इसीलिये मामाजीने अपने पास न रक्खे और मेरेको दे दिये। इनको परीक्षा कराने और व्यापार सिखानेके वास्ते मेरेको अपने पास रक्खा और इन्होंने मुझे सब तरहसे होशियार कर दिया इसी हेतुले मेरे पिताने चार कांचके टुकड़े देकर मामाजीको भुलावा दिया था। यदि वे ऐसा मेरेको न समभा जाते तो मैं कदापि होशियार न होता। यही सब बिचार करके उन कांचके टुकड़ोंको फेंककर दूकानपर आया और उन रनोंका सब हाल कह सुनाया और बोला कि हे मामाजी, आपकी कृपाले भव मैं रोजगार हाल वाणिज्य व्यापारमें समझने लगा और अब कहीं न डगाऊंगा।
Scanned by CamScanner