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[ द्रव्यानुभव-रत्नाकर।
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समबाय निमित्त आदि अपेक्षा कारणमें गिने जायंगे, परन्तु उपादान कारणतो द्रव्यानुयोग ही ठहरेगा । इसलिये हमने इन पांच समबायों को छोड़कर अनुयोग आदिमें ही कार्य, कारण दिखाया हैं। क्योंकि जब अनुयोगों में कार्य कारण जिज्ञासु अच्छी तरहसे समझ लेंगे तो इनकी रीति सुगमतासे समझमें आजायगी । जो गुरू आत्मबोधके कराने वाले है वे लोग जैसे कर्ता, कर्म, करण, आदि षट् कारकोंको सर्व वस्तु पर उतार कर बताते है, वैसे ही इन पांच समवायोंका भी पेश्तर ही से जिज्ञासुको अभ्यास करा देते हैं। इसलिये जिज्ञासुको इनके समझने की कांक्षा नहीं रहती । सो दुःख गर्भित, मोहगर्भित वैराग्य वाले गुरुकुल बासके बिना अन्यमतके पंडितोंकी सहायतासे, अथवा अपनी बुद्धि बलसे आचायोंके अभिप्रायको जाने बिना मनमानी कल्पना करके भव्य जीवोंको अपने जालमें फँसाकर केवल झांझ मंजीरा बजवाते है, और अपना आडम्बर लोगोंको दिखाते है । उन की कुतर्कका निराकरण करने के वास्ते और भव्य जीवोंका उद्धार होनेके वास्ते उनके जालमें न फँसनेके वास्ते किञ्चित पांचो समवायों का स्वरूप दिखाते हैं, सो प्रथम पांचो समवायोंका नाम कहते हैं । १ काल, २ स्वभाव, ३ नियत, ४ पूर्वकृत ५ पुरुषाकार । अब इन पांचो समायोंका अर्थ करते हैं कि, कालतो उसको कहते हैं कि जिस काल अर्थात् जिस समय में जो काम प्रारम्भ करे अथवा होने वाला हो । ( स्वभाव ) उसको कहते हैं कि जिसमें पलटन पना अर्थात् बदलना हो । ( नियत ) अर्थात् निमितका मिलना । पूर्वकृत अर्थात् पूर्व उपार्जन किया हुआ सत्तामें हो। ( पुरुषाकार ) अर्थात उद्यम करना । इस रीति से इनका अर्थ हुआ । अब दो चार बस्तुके ऊपर उतार कर दिखाते हैं ।
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प्रथम खानेके ऊपर पांचो समवायोंको उतार कर दिखाते हैं । कालतो साधारण दोपहर वा शामके वक्त अथवा जिस वक्त में भूख ( क्षुधा ) लगे, उस समयको काल कहना । स्वभाव अर्थात् खानेका जिसमें स्वभाव हो, किन्तु जीव मात्र कर्म अर्थात् वेदनीकर्मके प्रसङ्गसे
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