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द्रव्यानुभव-रत्नाकर।]
[३७ पक्षपातसे है, सो तुम्हारेको आत्माके कल्याण की इच्छा है तो बिबेक सहित बुद्धिसे विचार करो कि जो हमने जीवके छः लक्षण कहे हैं, वेछः लक्षण अपेक्षा सहित यथावत पांचोथावरों में घट सक्त हैं, जोनिर्पक्ष होकर बिबेकसुन्य बुद्धिका विचार न करे और पक्षपातको दृढ़ करके प्रतिपादन करे, उस पुरुषको तो येछः लक्षण जीवमें नदीखे, क्योंकि मिथ्यात्वरूप अज्ञानके जोरसे यथाबत वस्तुका स्वरूपनहीं दीखता, सो इस अज्ञानसे न दीखनेके ऊपर एक दृष्टान्त दिखाते हैं कि, जैसे कोई पुरुष धतूरेके बीज भक्षण (खाय) करले और उसके नशेमे सफेद बस्तुको भी वो नशेवाला पुरुष पीली देखता है और जो उसे कोई कहे दूध, शंख, चांदी आदिक सफेद हैं तो वो किसोका कहना नहीं माने और उसको पोलोही कहता है, अथवा कोई पुरुष मदिरा ( दारू पान ) पी करके उन्मत्त होकर नशेके जोरसे मा, बहिन, वेटी, भगिनी, किसीको नहीं पहचानता और कामातुर हो करके उन स्त्रीयोंके पीछे भागता है। तैसेही मिथ्यात्व रूप अज्ञानके वशहोकर सर्वज्ञ देव वीतरागका स्याद्वादरूप यथावत कथनको नहीं समझ सक्ता। क्योंकि जबतक अपेक्षाको नहीं समझेगा तबतक इस स्याद्वाद सिद्धान्तका रहस्य यथावत मालूम न होगा। इसलिये जो लक्षण हम ऊपर लिख आये हैं वोलक्षण जीवमें यथावत घटते है, परन्तु विवेक सुन्य होकर पक्षपातसे जो कोई विचारते हैं, उनको तो यथावत मालम न होगा, क्योंकि रागद्वष और निर्पेक्षताके जोरसे मालूम नहीं होता, परन्तु बिबेक सहित बुद्धिसे विचार करनेवाले पुरुषोंको अपेक्षा सहित बिचार करनेसे ऊपर लिखे हुए लक्षण यथावत प्रतीत देते हैं। इसलिये किञ्चित् बिबेको पुरुषोंके बिचार योग्य ऊपर लिखे लक्षणोको युक्ति सहित पांच थावरों से बनस्पती कायके ऊपर उतारकर दिखाते हैं।
प्रथम शान लक्षणको घटायकर दिखाते हैं, कि जिससे सुख दुखः की प्रतीति अर्थात् सुख दुख जाना जाय उसका नाम शान है, तो विवेक सहित बुद्धिका विचार करनेवाले जो पुरुष हैं वे लोग उस
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