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द्रव्यानुभव-रत्नाकर ।]
[ ३५ कि कितने दूव्य हैं सो प्रथम द्रव्योंके नाम कहते हैं, कि जीव द्रव्य अर्थात् जीवास्तिकाय, धर्मदव्य अर्थात् धर्मास्तिकाय, अधर्मदव्य अर्थात् अधर्मास्तिकाय, आकाशद्व्य. अर्थात् आकास्तिकाय, पुद्गलद्रव्य अर्थात् पुद्गलास्तिकाया, कालव्य, इस रोतिसे यह छदव्य कहे। . , ..
(प्रश्न) पांच व्यतो अस्ति काय कहे और कालको अस्ति कायक्योंन कहा।
(उत्तर) पांच व्यतो अस्तिकाय अर्थात् प्रदेशवाले हैं इसलिये उनको अस्तिकाय कहा; और कालमें प्रदेशादिक है नहीं इसलिये कालको अस्तिकाय न कहा, दूसरा कालव्य जिज्ञासुके .समझानेके वास्त उपचारसे दूव्यमान है, क्योंकि उत्पादबयकाहो. नाम काल है, सो उत्पादव्य ऊपर लिखे पांचव्यों में ही होती है इसलिये काल दूव्यको अस्तिकाय न कहा। और इस काल दुव्यकी मुख्यता और उपचारके ऊपर विशेष चर्चा हमारा किया हुआ “स्याद्वाद अनुभव रत्नाकर" तीसरे प्रश्नके उत्तरमें विशेष करके लिखी है, सो जिसकी खुशी होय सो वहांसे देखलेय ग्रन्थ बढ़जानेके भयसे इस जगहन लिखा, अब इस जगह दूव्योंका विशेष विचार करनेके वास्त एक एक व्यका गुण, पर्याय प्रदेशादि अलग २ कहते हैं। ..
जीवास्तिकाय । __प्रथम जीव दूव्यकालक्षण कहते हैं कि (चेतना लक्षणों ही जीवाः ) भर्थ-चेतन अर्थात् ज्ञान स्वरूप है जिसका उसका नाम जीव है, यह सामान्य लक्षण हुआ, अब विशेष लक्षण भी जीवका कहते है “नाणंच दसणं चेवा चारितंच तवीतहा बीर्य उवेगोयं येव जीवस्स लक्षण" अर्थनाण कहता शान, दर्शन कहता देखना, चारित्र कहता त्याग, तप कहता तपस्या, बीर्य कहता बल, (प्राक्रम, शक्ति) उपयोग, येछः लक्षण जिसमें होय वो जीव है। इस रीतिसे जीवका लक्षण कहा। अब इसके गुण कहते हैं कि अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त चारित्र, अनन्त वीर्य, ये चार मुख्यगुण है और अक्रिय,
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