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द्रव्यानुभव-रत्नाकर।]
[ २६ पेश्तर अस्तित्व कहा, दूसरा इस अस्तित्व कहनेसे सर्वज्ञ देवका यही अभिप्राय हैं कि नास्तिक मतका निराकरन होगया, इस हेतुसे पेश्तर अस्तित्व शब्द कहा । दूसरा वस्तुत्वं कहनेसे बस्तुका प्रतिपादन किया, जब बस्तु कहनेसे जिज्ञासुको कांक्षा हुई कि बस्तु क्या चीज हैं, जिस के वास्ते दव्यत्व शब्द, कहा । दव्यत्वको स्वतह सिद्ध न होनेसे प्रमेययत्व कहा । प्रमेयत्व के कहनेसे प्रमाण की कांक्षा होगई जब प्रमाणसे प्रमेय सिद्ध हुआ तो फिर जो जगतको मिथ्या मानने वाले हैं उनका निराकरन करनेके वास्ते और जगतकी सत्यता ठहरानेके वास्ते सत्यत्व कहा । इस सत्यत्वमें जो हमेंशा उत्पाद, वय होता है इसलिये अगुरु लघुत्व अर्थात् षट्गुण हानि वृद्धि उत्पाद वय रूप अगुरु लघुत्व कहा, 'इसरीतिसे यह छः सामान्य स्वभाव कहे । अब अस्तित्व रूपजो जगत उसको क्रमसे प्रतिपादन करते हैं। .
१ अस्तित्वं । ... प्रथम अस्तित्व शब्दका अर्थ करते हैं कि, जो जगतू अर्थात् लोकाकाशमें जितने पदार्थ वा दब्य हैं ( जिनके नाम हम आगे कहेंगे) सो पदार्थ अस्ति रूप हैं अर्थात् कभी उनका नाश न होय, क्योंकि देखो इस जगत्में जितने पदार्थ हैं वो कब उत्पन्न हुवे ऐसा कभी नहीं कह सक्त, अथवा कभी नष्ट हो जायंगे सो भी नहीं कह सक्त, इसलिये जो जगतमें पदार्थ हैं वे सदाकाल जैसेके तैसेही बने रहेंगे, इसलिये सर्वज्ञ देव वीतरागने उन पदार्थोको अस्तिरूप कथन किया, इस अस्तिपनेसे नास्तिक मतका निराकरन होगया।
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२ वस्तुत्व। ... .. . दूसरा वस्तुत्व स्वभावका अर्थ करते हैं कि, जो जगतमें पदार्थ हैं वो एक जगह इकट्ठ अर्थात् आपसमें अनादि संयोग सम्बन्धसे मिले हुये इसलोकमें है ( जिनके नाम हम आगे कहेंगे ), वो पदार्थ अपने गुण, पर्याय, प्रदेश मादिकोंकी सत्ता लिये हुये अपने स्वभावमें रहते हैं, दूसरे पदार्यमें मिले नहीं, इसलिये उसमें वस्तुत्वपना हुमा । जो आपस
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