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[द्रव्यानुभव-रत्नाकर
फ्यखानोसे उलटा भ्रष्ट कर देते हैं, परन्तु जो जिनागमके रहस जानकार आत्मार्थी सत्पुरुष हैं वे लोग जैसे उस साहूकारने और पुत्रको वेश्याओं को बुराई देखाकर उसका वेश्यागमनपना छुड़ा दिया तैसेही जो सत्पुरुष उपदेश देने वाले हैं, वे भी जिज्ञासुओंको पदार्थको बुराई दिखायकर उन पदार्थोंका त्याग कराते हैं, तब वे जिज्ञासु पदार्थ की बुराई जानकर यथावत त्याग पचखानोंको विश्वास सहित पालते हैं, और जिन धर्मके रहस्य को पायकर अपनो आत्माका कल्याण करते हैं।
पदार्थोंका वर्णन । अब इस ग्रन्थमें पेश्तर पदार्थों का निरूपण करते हैं कि, जगत्में कितने पदार्थ हैं और कौन २ पदार्थमें जिज्ञासु रुचि करे और कौनमें ग्लानी करे, इस हेतुसे प्रथम सामान्य स्वभाव जो कि श्री सर्व देव वीतरागने कहे हैं उसीके अनुसार निरूपण करते हैं । सो सामान्य स्वभाव छः हैं उन्हींका नाम कहते हैं। १ अस्तित्वं, २ वस्तुत्वं, ३ दृश्यत्वं, ४ प्रमेयत्वं, ५ सत्यत्वं, ६ अगुरु लघुत्वं । यह सामान्य स्वभाव हैं। इनको सामान्य स्वभाव इसलिए कहा है कि यह छवों स्वभाव सर्व जगह अर्थात् जगत्में जो पदार्थ वा द्रव्य हैं उन सबों में यह छओं स्वभाव पाये जावें। ऐसी बस्तु जगतमें कोई नहीं है कि जिसमें यह छओं न मिलें अर्थात् मिलेही । इसलिये इनको सामान्य स्वभाव कहा। दूसरा इस सामान्यके कहनेसे विशेष की कांक्षा रहती है, इस कांक्षाके भी जतानेके वास्ते इनको सामान्य स्वभाव कहा।
__ (शंका ) इन छओं सामान्य स्वभावमें पेश्तर अस्तित्वं क्यों कहा पेश्तर वस्तुत्वं अथवा दूव्यत्वं ऐसाही नाम क्य न कहा।
(समाधान ) पेश्तर अस्तित्वं कहनेसे जिज्ञासुको कांछा होती हैं कि इसको अस्तित्व क्यों कहा, इस हेतुसे
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