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द्रव्यानुभव-रत्नाकर।]
इस रीतिसे कारण कार्य को गुरु आदिकसे जाने । जबतक कार्य कारणकी पहचान न होगी तवतक जिन धर्मका रहस्य मिलना मुश्किल है; और इन बातोंकी परीक्षा वही करावेंगे कि, जो श्रीवी
राग सर्वज्ञ देवका सत्य उपदेश देनेवाले करुणानिधि जिन आज्ञांके रहस्यके जानने वाले हैं, नतु दुख गर्भित, मोह गर्भित, उपजीवी, मालखानेवाले। अब इस जगह परीक्षाके ऊपर दृष्टांत देकर दान्तिको उतारकर समझाते हैं।
एक शहरमें एक साहूकार रहता था उसके यहां नाना प्रकारके रोजगार हाल, हुण्डी, पुरजा, जवाहिर, आदिके होते थे। और सैकड़ों मुनीम गुनाश्ते आदि नौकर रहते थे और जगह २ देशावरों में कोठी दुकानों पर काम होता था। साहूकारके एक पुत्र भी था, उस पुत्रको .. साहूकारने बचपनसे लाड़में रक्खा और उसको कुछ बनिज व्यापार जवाहिरादिककी परीक्षाओं में होशियार न किया और उसका व्याह शादी भी कर दिया। जब वह लड़का अपनो यौवन अवस्थापर आया तब खेल, कूद, नाच, रङ्ग, मेला, तमाशा, इन्द्रियोंके भोग विषयमें लगा रहे और दुकान वणिज व्यापार रोजगार हालका किञ्चित् भी खयाल न करे और उसका पिता बहुत उसको समझावे परन्तु किसी को न मानें। क्योंकि बालकपनमें उसके खल, कूद, नाच, रंगके संस्कारतो दृढ़ हो गये और वणिज ब्यापारके संस्कार बालकपनमें न हुए । . .
इस कारणसे वो बणिज व्यौपारमें मूर्ख रहा और किसीकी शिक्षा न मानी तब उसका पिता भी शिक्षा देनेसे लाचार होकर चुप हो गया। कुछ दिनके बाद उस साहकारका अन्त समय आया तब साहकारने अपने पुत्रको एकान्तमें बुलाकर उससे कहा कि हे पुत्र आज तक तैनें कोई बात मेरी नहीं मानी और अपने वणिज व्यौपारमें मूर्ख रहा, इसलिये मैं तेरेको समझाता हूँ कि मेरे मरेके वाद यह गुमास्ते लोग सब धन खा जायेंगे, क्योंकि तेरे रोजगार आदि व्यौपार न समझनेसे। इसलिये मैं तेरे भलेके वास्ते यह चार रत्न तेरेको
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