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धर्मपरीक्षा-३ वसिष्ठव्यासवाल्मीकमनुब्रह्मादिभिः कृताः । श्रूयन्ते स्मृतयो यत्र वेदार्थप्रतिपादकोः ॥२३ दृश्यन्ते परितश्छात्राः संचरन्तो विशारदाः । गृहीतपुस्तका यत्र भारतीतनया इव ॥२४ वचोभिर्वादिनो ऽन्योन्यं कुर्वते मर्मभेदिभिः । यत्र वादं गतक्षोभा' युद्धं योधाः शरैरिव ॥२५ सर्वतो यत्र दृश्यन्ते पण्डिताः कलभाषिभिः। शिष्यैरनुवृता हृद्याः पद्मखण्डा इवालिभिः ।।२६ ध्यानाध्ययनतन्निष्ठा' यत्र मुण्डितमस्तकाः। गङ्गातटे विलोक्यन्ते भव्या मस्करिणो ऽभितः ॥२७ यत्राम्बुवाहिनीः श्रुत्वा कुर्वतीः शास्त्रनिश्चयम् ।
वादकण्ड्वागताः' क्षिप्रं पलायन्ते ऽन्यवादिनः ॥२८ २३) १. क पट्टणनगरे । २. क कथकाः । २५) १. रहितक्षोभाः। २६) १. मधुर । २. क युक्ताः; वेष्टितालंकृताः । ३. भ्रमरैरलंकृताः । २७) १. तत्पराः । २. संन्यासिनः; क परिव्राजकाः । २८) १. क वादखजूं ।
वहाँ वेदके अर्थका प्रतिपादन करनेवाली ऐसी वसिष्ठ, व्यास, वाल्मीकि, मनु और ब्रह्मा आदिके द्वारा रची गयीं स्मृतियाँ सुनी जाती हैं ।।२३।।
वहाँ पुस्तकोंको लेकर सब ओर संचार करनेवाले विद्वान् विद्यार्थी सरस्वतीके पुत्रों जैसे दिखते हैं ॥२४॥
जिस प्रकार योद्धा उद्वेगसे रहित होकर मर्मको भेदन करनेवाले बाणोंसे परस्पर युद्ध किया करते हैं उसी प्रकार उस नगरमें वादीजन उद्वेगसे रहित होकर मर्मभेदी वचनोंके द्वारा परस्परमें वाद किया करते हैं ।।२५।।
वहाँपर सब ओर मधुरभाषी शिष्योंसे वेष्टित पण्डित जन भ्रमरोंसे वेष्टित मनोहर कमलखण्डोंके समान दिखते हैं ।।२६।।
उस नगरमें सिरको मुड़ाकर ध्यान व अध्ययनमें संलग्न रहनेवाले उत्तम संन्यासी गंगाके किनारे सब ओर देखे जाते हैं ।।२७।।
वहाँ शास्त्रनिश्चयको करनेवाली अम्बुवाहिनीको सुनकर वादकी खुजलीको मिटानेके लिए आये हुए दूसरे वादी जन शीघ्र ही भाग जाते हैं ॥२८||
२३) इ वाल्मीकि । २५) ब वादिनो नित्यं; अ मर्मवेदिभिः । २६) ब शिष्यैश्च संयुता, क शिष्यरनुगता, ड शिष्यरनुद्रुता। २८) ड इ वाहिनी.....कुर्वती ।
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