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धर्मपरीक्षा-४
सामन्तनगरस्थायी रेवाया' दक्षिणे तटे । ग्रामकूटो बहुद्रव्यो बभूव बहुधान्यकः ॥४७ सुन्दरी च कुरङ्गी च तस्य भार्ये बभूवतुः। भागीरथीच गौरी च शम्भोरिव मनोरमे ॥४८ कुरङ्गी तरुणीं प्राप्य वृद्धां तत्याज' सुन्दरीम् । सरसायां हि लब्धायां विरसां को निषेवते ॥४९ सुन्दरी भणिता तेन' गृहीत्वा भागमात्मनः । ससुता तिष्ठ भद्रे त्वं विभक्ता भवनान्तरे ॥५० साध्वी तथा स्थिता सापि स्वामिना गदिता यथा। शीलवत्यो न कुर्वन्ति भर्तृवाक्यव्यतिक्रमम् ॥५१ अष्टौ तस्या' बलीवर्दा वितीर्गा दश धेनवः ।
द्वे दास्यौ हालिको द्वौ च मन्दिरं सोपचारकम् ॥५२ ४७) १. क रेवानदी। ४८) १. गंगा। ४९) १. क असौ ग्रामकूटः । ५०) १. क ग्रामकूटेन । २. स्वस्य । ३. भिन्ना । ५१) १. क भर्तारकवचनउल्लङ्घनम् । ५२) १. क सुन्दर्याः । २. क वृषभाः । ३. दत्ताः । ४. उपकरणसहितम्; क बहुधान्यकम् ।
रेवा नदीके दक्षिण किनारेपर एक सामन्त नगर है। उसका स्वामी एक बहुधान्यक नामका ग्रामकूट (शूद्र) था जो बहुत धन और धान्यसे सम्पन्न था॥४७॥
जिस प्रकार महादेवके गंगा और पार्वती ये दो मनोहर पत्नियाँ हैं उसी प्रकार उसके सुन्दरी और कुरंगी नामकी दो रमणीय स्त्रियाँ थीं ॥४८॥
इनमें कुरंगी युवती और सुन्दरी वृद्धा थी। तब उसने युवती कुरंगीको स्वीकार कर सुन्दरीका परित्याग कर दिया। ठीक है-सरस स्त्रीके प्राप्त होनेपर भला नीरस स्त्रीका सेवन कौन करता है ? कोई नहीं करता ।।४।।
उसने सुन्दरीसे कहा कि हे भद्रे ! तू अपना हिस्सा लेकर पुत्रके साथ अलगसे दूसरे मकानमें रह ॥५०॥
तब उत्तम स्वभाववाली वह सुन्दरी भी जैसा कि पतिने कहा था तदनुसार अलग मकानमें रहने लगी। ठीक है-शीलवती स्त्रियाँ कभी अपने पतिकी आज्ञाका उल्लंघन नहीं करती हैं ।।५।।
उस समय ग्रामकूटने उसे आठ बैल, दस गायें, दो दासियाँ, दो हलवाहे (हल चलानेवाले ) और एक उपकरणयुक्त घर दिया ॥५२॥ ४७) अ नगरस्वामी, इ नगरस्थाया। ४८) अ ब ड इ भागीरथीव गौरीव । ५०) ब भुवनान्तरे । ५१) अ ब क शीलवंत्यो।
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