________________
धर्मं परीक्षा-९
कालानुरूपाणि विचार्य वर्यः सर्वाणि कार्याणि करोति यो ऽत्र । बुधाचितः सारमसौ समस्तं मनीषितं प्राप्य विमुक्तिमेति ॥९४ इहा हिते हितमुपयाति शाश्वतं हिते कृते यदहितमग्रतो जनः । हितैषिणो मनसि विवेच्य तद्धिया हितं पुरो ऽमितगतयो वितन्वते ॥९५
इति धर्मपरीक्षायाममितगतिकृतायां नवमः परिच्छेदः ॥ ९ ॥
जो विवेकी सत्पुरुष यहाँ विचार करके समय के अनुकूल ही सब कार्योंको करता है वह विद्वानों द्वारा पूजित होकर सारभूत सब ही अभीष्टको प्राप्त करके अन्त में मुक्तिको भी प्राप्त कर लेता है ||१४||
मनुष्य यहाँ अहित करनेपर आगे निरन्तर हितको प्राप्त होता है व हित करनेपर अहितको प्राप्त होता है । परन्तु अपरिमित ज्ञानके धारक - विवेकी - हितैषी जन बुद्धिसे विचार करके आगे मनमें हितको ही विस्तृत करते हैं ||१५||
इस प्रकार आचार्य अमितगतिविरचित धर्मपरीक्षा में नौवाँ परिच्छेद.. समाप्त हुआ ||९||
१५३
Jain Education International
९४) ब बुधाचितम् । ९५ ) ब जनम् अ विसिव्य ते धिया, व विविच्य तद्विजा हि तं क विचिन्त्य for विवेच्य ड विविच्य ते द्धिया ।
२०
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org