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अमितगतिविरचिता
कन्ये नन्दासुनन्दाख्ये कच्छस्य नृपतेर्वृषा । जिने नियोजयामास नीतिकीर्ती इवामले ॥२४ एतयोः कान्तयोस्तस्य पुत्राणामभवच्छतम् । सब्राह्मीसुन्दरीकन्यं मानसाह्लादनक्षमम् ॥ २५ जिनः कल्पद्रुमापाये लोकानामाकुलात्मनाम् । दिदेश षक्रियाः पृष्टो जीवनस्थितिकारिणीः ॥२६ ततो नीलंजसां देवो' नृत्यन्तीं देवकामिनीम् । विलीनां सहसा दृष्ट्वा चिन्तयामास मानसे ॥२७ यथैषा तो नष्टा शम्पेव त्रिदशाङ्गना । तथा नश्यति निःशेषा लक्ष्मीर्मोहनिकारिणी ॥२८ सलिलं मृगतृष्णायां नभःपुर्यां महाजनः । प्राप्यते न पुनः सौख्यं संसारे सारवजिते ॥२९
२७) १. आदीश्वरः ।
२८) १. अस्माकम् ।
जन्म लेने के पश्चात् जब भगवान् ऋषभनाथ विवाह के योग्य हुए तब इन्द्रने उनके लिए नीति और कीर्तिके समान नन्दा और सुनन्दा नामकी क्रमसे कच्छ और महाकच्छ राजाओं की पुत्रियोंकी योजना की उनका उक्त दोनों कन्याओंके साथ विवाह सम्पन्न करा दिया ||२४||
इन दोनों पत्नियों से उनके ब्राह्मी और सुन्दरी नामकी दो कन्याओंके साथ सौ पुत्र उत्पन्न हुए। ये सब उनके मनको प्रमुदित करते थे ||२५||
कल्पवृक्षोंके नष्ट हो जानेपर जब प्रजाजन व्याकुलताको प्राप्त हुए तब उनके द्वारा पूछे जानेपर भगवान् आदि देवने उन्हें जीवनकी स्थिरताकी कारणभूत असि - मषी आदिरूप छह क्रियाओंका उपदेश दिया था ||२६||
तत्पश्चात् सभाभवनमें नृत्य करती हुई नीलंजसा नामक अप्सराको अकस्मात् मरणको प्राप्त होती हुई देखकर भगवान् ने अपने मनमें इस प्रकार विचार किया ||२७||
जिस प्रकार से यह देवांगना देखते ही देखते बिजलीके समान नष्ट हो गयी उसी प्रकार से प्राणियों को मोहित करनेवाली यह समस्त लक्ष्मी भी नष्ट होनेवाली है ||२८||
कदाचित् बालूमें पानी और आकाशपुरीमें महापुरुष भले ही प्राप्त हो जावें, परन्तु इस असार संसार में कभी सुख नहीं प्राप्त हो सकता है ||२९||
२४) अ जिनेन योजया .... नीतिः कीर्तेर्यथा वृषा । २५) अ सैकं ब्राह्मी सुन्दरीकं, बसुन्दरीकन्या, क ंकन्याम् । २६) क ड द्रुमप्रायो; अ जीवितस्थिति । २७ ) अ चिन्तया मानसे तदा । २८) अ ब क पश्यताम्; इ महविकारिणी ।
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