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अमितगतिविरचिता न विशेषो ऽस्ति सेवायां स्वदारपरदारयोः। परं स्वर्गगतिः पूर्वे परे श्वभ्रगतिः पुनः॥६० या विमुच्य स्वभर्तारं परमभ्येति निस्त्रपा। विश्वासः कोदशस्तस्यां जायते परयोषिति ॥६१ दृष्ट्वा परवधू रम्यां न किचिल्लभते सुखम् । केवलं दारुणं पापं श्वभ्रदायि प्रपद्यते ॥६२ यस्याः संगममात्रेण क्षिप्रं जन्मद्वयक्षतिः। हित्वा स्वदारसंतोषं सो ऽन्यस्त्री सेवते कुतः ॥६३ यः कामानलसंतप्तां परनारी निषेवते ।
आश्लिष्यते स लोहस्त्रों श्वभ्रे वज्राग्नितापिताम् ॥६४ करनेवाली है। इस प्रकारसे जो परस्त्री विरुद्ध व्यवहारको बढ़ानेवाली है उसका दूरसे ही परित्याग करना चाहिए । अभिप्राय यह है कि स्नेही कभी दुखप्रद नहीं होता, निर्मल वस्तु कभी मलको उत्पन्न नहीं करती, जलका आधार कभी प्यासको नहीं बढ़ाता है, शीतल वस्तु कभी उष्णताकी वेदनाको नहीं उत्पन्न करती है तथा जो अपना सब कुछ दे सकता है वह कभी दूसरेके द्रव्यका अपहरण नहीं करता है। परन्तु चूँकि उक्त परस्त्रीमें ये सभी विरुद्ध आचरण पाये जाते हैं, अतएव आत्महितैषी जीवको उस परस्त्रीका सर्वथा ही त्याग करना चाहिए ॥५८-५९।।
___ स्वकीय पत्नी और दूसरेकी स्त्री इन दोनोंके सेवनमें कोई विशेषता नहीं है-समान सुखलाभ ही होता है; यही नहीं, बल्कि भयभीत रहने आदिके कारण परस्त्रीके सेवनमें वह सुख भी नहीं प्राप्त होता है। फिर भी उन दोनोंमें पूर्वका-अपनी पत्नीका-सेवन करनेपर प्राणीको स्वर्गकी प्राप्ति होती है तथा पिछलीका-परस्त्रीका-सेवन करनेपर उसे नरकगतिकी प्राप्ति होती है ॥६०॥
___ जो परकीय स्त्री अपने पतिको छोड़कर निर्लज्जतापूर्वक दूसरेके पास जाती हैउसके साथ रमण करती है-उसके विषयमें भला किस प्रकार विश्वास किया जा सकता है ? नहीं किया जा सकता है ॥६॥
जो नराधम परस्त्रीको रमणीय देखकर उसकी अभिलाषा करता है वह वास्तव में सुखको नहीं पाता है, किन्तु वह केवल नरकको देनेवाले भयानक पापको स्वीकार करता है-उसको संचित करता है ॥२॥
जिस परकीय स्त्रीके संयोग मात्रसे दोनों लोकोंकी हानि शीघ्र होती है उस परकीय स्त्रीका सेवन भला स्वकीय पत्नीमें सन्तोष करके कहाँसे करता है-स्वकीय पत्नीके सेवनमें ही सन्तोष-सुखका अनुभव करनेवाला मनुष्य उभय लोकमें दुख देनेवाली उस परस्त्रीकी कभी अभिलाषा नहीं करता है ॥६३॥
जो कामरूप अग्निसे सन्तापको प्राप्त हुई परस्त्रीका सेवन करता है वह नरकमें पड़कर वज्राग्निसे तपायी गयी लोह निर्मित स्त्रीका आलिंगन किया करता है ॥६४॥ ६३) अ°क्षितिः; ब कृत्वा for हित्वा; ब ड सान्यस्त्री सेव्यते ।
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