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धर्मपरीक्षा - १०
बभाषिरे ततो विप्रा भद्रास्त्येवंविधो हरिः । चराचर जगद्व्यापी को ऽत्र विप्रतिपद्यते ' ॥१८ दुःखपावक पर्जन्यो ' जन्माम्भोधितरण्डकः । ङ्गी विष्णुः पशवस्ते नृविग्रहाः ॥ १९ भट्टा यदीदृशो विष्णुस्तदा किं नन्दगोकुले | त्रायमाणः स्थितो धेनूर्गोपाली कृतविग्रहः ॥२० शिखिपिच्छधरो बद्धजूटः कुटजमालया । गोपालः सह कुर्वाणो रासक्रीडां पदे पदे ॥२१ दुर्योधनस्य सामीप्यं किं गतो दूतकर्मणा । प्रेषितः पाण्डुपुत्रेण पदातिरिव वेगतः ॥२२
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हस्त्यश्वरथपादातिसंकुले समराजिरे ' । किं रथं प्रेरयामास भूत्वा पार्थस्य सारथिः ॥२३
१८) १. कः संदेहं करोति; क को निषिद्यते । १९) ९. मेघः क दुःखाग्निशमनमेघः । २१) १. पुष्पमाला | २. किं स्थितः । २२) १. अर्जुनेन ।
२३) १. संग्रामे ।
इसके उत्तर में वे सब ब्राह्मण बोले कि हे भद्र! चराचर लोकमें व्याप्त इस प्रकारका विष्णु परमात्मा है ही, इसमें कौन विवाद करता है ? अर्थात् हम सब उस विष्णु परमात्मापर विश्वास रखते हैं ||१८||
जो लोग दुःखरूप अग्निको शान्त करने के लिए मेघ के समान व संसाररूप समुद्रसे पार उतारने के लिए नौकाके समान उस विष्णु परमात्माको स्वीकार नहीं करते हैं उन्हें मनुष्य के शरीरको धारण करनेवाले पशु ही समझना चाहिए ||१९||
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इसपर मनोवेग बोला कि हे वेदज्ञ विप्रो ! यदि विष्णु इस प्रकारका है तो फिर वह नन्दगोकुल - नन्दग्राम में ग्वालेका शरीर धारण करके गायोंको चराता हुआ क्यों स्थित रहा तथा वहीं मोरके पिच्छोंको धारण कर व कुटज पुष्पों की मालासे जूड़ा ( केशकलाप ) बाँधकर स्थान-स्थान पर ग्वालोंके साथ रासक्रीड़ा क्यों करता रहा || २०-२१।।
वह पाण्डुके पुत्र अर्जुनके द्वारा दूतकार्य के लिए भेजे जानेपर पादचारी सैनिकके समान शीघ्रता से दुर्योधनके समीपमें क्यों गया ? ||२२||
वह हाथी, घोड़ा, रथ और पादचारी सैनिकोंसे व्याप्त रणभूमि में अर्जुनका सारथि बनकर रथको क्यों चलाता रहा ? ||२३||
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१९) बतरण्डकम् । २१ ) इ बद्धो दृढः कुटज । २२ ) व सुयोधनस्य; इ तो कि; अ ड पादातिरिव ।
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