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धर्मपरीक्षा-१८ कोटीकोटयो दशाब्धीनां प्रत्येकमनयोः प्रमाः। तत्रावसपिणी ज्ञेया वर्तमाना विचक्षणः ॥६ कोटीकोटयो ऽम्बुराशीनां सुखमासुखमादिमा। चतस्रो गदितास्तिस्रो द्वितीया सुखमा समा' ॥७ तेषामन्ते तृतीयाब्दे सुखमादुःखमोदिते'। तासु त्रिद्वचेकपल्यानि जीवितं क्रमतोऽङ्गिनाम् ॥८ त्रिद्वयेकका मताः क्रोशाः क्रमतोऽत्र तनूच्छितिः। त्रिद्वयेकदिवसस्तेषामाहारो भोगभागिनाम् ॥१ आहारः क्रमतस्तुल्यो बदरामलकाक्षकैः । परेषां दुर्लभो वृक्षः सर्वेन्द्रियबलप्रदः ॥१०
६) १. सागराणाम् । २. तयोः । ७) १. काल। ८) १. द्वे कोटीकोटयो । २. कालेषु । ९) १. कालेषु । १०) १. शक्तिवान् ।
उक्त दोनों कालोंमें प्रत्येकका प्रमाण दस कोडाकोडि सागरोपम है-सु. सु. ४ कोड़ाकोडि+सु. ३ को. को.+सु. दु. २ को. को.+ दु. सु. २१ हजार वर्ष कम १ को. को. और+ दु. दु. २१ ह. वर्ष = १० को. को. सा.। उन दोनों कालोंमें-से यहाँ वर्तमानमें अवसर्पिणी काल चल रहा है, ऐसा विद्वानोंको जानना चाहिये ॥६॥
प्रथम सुषमासुषमा काल चार कोडाकोडि सागरोपम प्रमाण, द्वितीय सुषमा काल तीन कोड़ाकोडि सागरोपम प्रमाण और तीसरा सुषमदुःषमा दो कोडाकोड़ी सागरोपम प्रमाण कहा गया है । इन तीन कालोंमें प्राणियोंकी आयु क्रमसे तीन पल्य, दो पल्य और एक पल्य प्रमाण निर्दिष्ट की गयी है ॥७-८॥
___ उक्त तीन कालोंमें प्राणियोंके शरीरकी ऊँचाई क्रमसे तीन, दो और एक कोश मानी गयी है। इन कालोंमें भोगभूमिज प्राणियोंका आहार क्रमसे तीन, दो और एक दिनके अन्तरसे होता है ॥९॥
वह आहार भी उनका प्रमाणमें क्रमसे बेर, आँवला और बहेड़ेके फल के बराबर होता है । इस प्रकार प्रमाणमें कम होनेपर भी वह सब ही इन्द्रियोंको शक्ति प्रदान करनेवाला होता है। ऐसा पौष्टिक आहार अन्य जनोंको-कर्मभूमिज जीवोंको दुर्लभ होता है ॥१०॥
७) असुषमादिना....सुषमा स सा। ८) अ तेषामेव, ब तेषामेते; अ तेषु for तासु; इ क्रमतो ऽङ्गिनः । ९) अ तनूत्सृतिः, क तनूस्थितिः ।। १०) अ बदराम्लककाख्यकैः; क इ वृष्यः सर्वेन्द्रियं ।
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