________________
१६४
अमितगतिविरचिता प्रक्रमं बलिबन्धस्य कथयामि तवाधुना। तं यो ऽन्यथा जनैर्नीतः प्रसिद्धिं मुग्धबुद्धिभिः ॥६१ बद्धो विष्णुकुमारेण योगिना लब्धिभागिना। मित्र द्विजो बलिदुष्टः संयतोपद्रवोद्यतः ॥६२ विष्णुना वामनीभूय बलिर्बद्धः क्रमैस्त्रिभिः'। इत्येवमन्यथा लोकैहोतो मूढमोहितैः ॥६३ नित्यो निरञ्जनः सूक्ष्मो मृत्यूत्पत्तिविजितः। अवतारमसौ प्राप्तो दशधा निष्कलः कथम् ॥६४ पूर्वापरविरोधाढ्यं पुराणं लौकिकं तव । वदाम्यन्यदपीत्युक्त्वा खेटविग्रहमत्यजत् ।।६५ वक्रकेशमहाभारः पुलिन्दः कज्जलच्छविः । विद्याप्रभावतः स्थूलपादपाणिरभूदसौ॥६६
६३) १. क चरणैः। ६५) १. वेषम् । ६६) १. भिल्लः ।
अब मैं उस बलिके बन्धनके प्रसंगको तुमसे कहता हूँ जिसे मूढबुद्धि जनोंने विपरीत रूपसे प्रसिद्ध किया है ॥६॥
विक्रिया ऋद्धिसे संयुक्त विष्णुकुमार मुनिने अकम्पनाचार्य आदि सात सौ मुनियों के ऊपर उपद्रव करनेके कारण दुष्ट बलि नामक ब्राह्मण मन्त्रीको बाँधा था ।।६।।
इसे मूर्ख अज्ञानी जनोंने विपरीत रूपसे इस प्रकार ग्रहण किया है कि विष्णुने वामन होकर-वेदपाठी ब्राह्मण वटुके रूपमें बौने शरीरको धारण करके-तीन पाँवोंके द्वारा बलि राजाको बाँधा था ॥६३॥ . जो विष्णु परमेष्ठी नित्य, निर्लेप, सूक्ष्म तथा मरण व जन्मसे रहित होकर अशरीर है वह दस प्रकारसे अवतारको कैसे प्राप्त होता है-उसका मत्स्य आदिके रूपमें दस अवतारोंको ग्रहण करना कसे युक्तिसंगत कहा जा सकता है ? ॥६४॥
हे मित्र ! अब मैं अन्य विषयकी चर्चा करते हुए तुम्हें यह बतलाता हूँ कि लोकप्रसिद्ध पुराण पूर्वापरविरोधरूप अनेक दोषोंसे परिपूर्ण है । यह कहकर मनोवेगने विद्याधरके शरीरको-वैसी वेषभूषाको छोड़ दिया और विद्याके प्रभावसे कुटिल बालोंके बोझसे सहित, काजलके समान वर्णवाला ( काला) तथा स्थूल पाँव और हाथोंसे संयुक्त होकर भीलके रूपको ग्रहण कर लिया ॥६५-६६।।
६२) अ ड मन्त्रद्विजो, क मत्रिद्विजो। ६३) ब इत्येव मन्यते । ६४) ब मृत्योत्पत्तिं । ६६) अ कलीन्द्रः, ब पुलीन्द्रः ; अ इ स्थूलपाणिपाद, ब स्थूलश्चापपाणिर।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org