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धर्मपरीक्षा-११ गत्वा त्वं तपसा रिक्तं कुरुष्व कमलासनम् । इत्युक्त्वा प्रेषयामास वृत्रहां तां तिलोत्तमाम् ॥३५ मनो मोहयितु दक्षं जीणं मद्यमिवोजितम् । ब्रह्मणः पुरतश्चक्रे सा नृत्यं रससंकुलम् ॥३६ शरीरावयवा गुह्या दशिता दक्षया तया। मेघा वर्धयितु सद्यः कुसुमायुधपादपम् ॥३७ पादयोर्जयोसोविस्तीर्णे जघनस्थले । नाभिबिम्बे स्तनद्वन्द्वे ग्रीवायां मुखपङ्कजे ॥३८ दृष्टिविश्रम्य विश्रम्य धावमाना समन्ततः । ब्रह्मणो विग्रहे तस्याश्चिरं चिक्रोड चञ्चला ॥३९ बिभेद हृदयं तस्य' मन्दसंचारकारिणी। विलासविभ्रमाधारा सा विन्ध्यस्येव नर्मदा ॥४०
३५) १. इन्द्रः । ३६) १. चित्तरञ्जकं नृत्तम् । ३७) १. क कामदेव। ३९) १. दृष्टिः । ४०) १. क पर्वतस्य ।
तत्पश्चात् उस इन्द्रने 'तुम जाकर ब्रह्मदेवको तपसे रहित (भ्रष्ट) कर दो' यह कहकर उक्त तिलोत्तमाको ब्रह्माजीके पास भेज दिया ॥३५॥
___उसने वहाँ जाकर ब्रह्मदेवके आगे पुरानी मदिराके समान मनके मोहित करने में समर्थ व रसोंसे परिपूर्ण उत्कट नृत्यको प्रारम्भ कर दिया ॥३६।।
उस चतुर अप्सराने नृत्य करते हुए कामरूप वृक्षको शीघ्र वृद्धिंगत करनेके लिए जलप्रद मेघोंके समान अपने गोपनीय अंगोंको-कामोद्दीपक स्तनादि अवयवोंको प्रदर्शित किया ॥३७॥
उस समय उसके दोनों पावों, जंघाओं, ऊरुओं, विस्तृत जघनस्थल, नाभिस्थान, स्तनयुगल और मुखरूप कमलपर क्रमसे विश्राम ले-लेकर-कुछ देर ठहर-ठहरकर सब ओर दौड़नेवाली ब्रह्माजीकी चंचल दृष्टि उक्त तिलोत्तमाके शरीरके ऊपर दीर्घ काल तक खेलती रही ॥३८-३९॥
इस प्रकार धीरे गमन करनेवाली व विलास एवं विभ्रमकी आधारभूत-अनेक प्रकारके हाव-भावको प्रदर्शित करनेवाली-उस तिलोत्तमाने, जिस प्रकार नर्मदा नदीने विन्ध्य जैसे दीर्घकाय पर्वतके मध्यभागको खण्डित कर दिया, उसी प्रकार ब्रह्माजीके हृदयको खण्डित कर दिया, उसने उनके मनको अपने वशमें कर लिया।॥४०॥ ३५) ब तं for त्वं । ३६) ब नृत्तं । ४०) क इ मन्दं संचार'; अ°विभ्रमाकारा।
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