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धर्मपरीक्षा-१४ तेदाश्रावि कथं मातुर्गर्भस्थेनौभिमन्युना। कथं मया न भूदेवास्तापसानां वचः पुनः॥६७ मयेने मुनिना धौते स्वकोपोने सरोवरे। पोतः शुक्ररसोऽभ्येत्य मण्डूक्या सलिलस्थया ॥६८ तदीयपानतो गर्भे संपन्ने सति ददुरी। सासूत सुन्दरी कन्यां संपूर्णे समये सति ॥६९ न जातेरस्मदीयाया योग्येयं शुभलक्षणा। इति ज्ञात्वा तया क्षिप्ता मण्डूक्या नलिनोदले ॥७० एकदा यतिना दृष्टवा सा सरोवरमीयुषा। स्वीकृता स्नेहतो ज्ञात्वा स्वबोजबलसंभवा ॥७१ उपार्यविविधस्तेने सा प्रपाल्य विवधिता। अपत्यपालने सर्वो' निसर्गेण प्रवर्तते ॥७२
६७) १. कथनम् । २. क पुत्रेण । ६८) १. नाम । २. एत्य । ७२) १. मयेन । २. जनः प्राणी।
भीतर प्रवेश करने की विधिको समझाया था। उसे उस समय माताके गर्भमें स्थित अभिमन्युने कैसे सुन लिया था और हे ब्राह्मणो ! मैं माताके गर्भ में स्थित रहकर तापसोंके कथनको क्यों नहीं सुन सकता था-जिस प्रकार गर्भस्थ अभिमन्युने चक्रव्यूहके वृत्तको सुन लिया था उसी प्रकार मैंने भी माताके गर्भमें रहते हुए तापसोंके कथनको सुन लिया था ॥६६-६७।।
मय नामक ऋपिने जब अपने लंगोटको तालाबमें धोया था तब उसमेंसे जो वीर्यका अंश प्रवाहित हुआ उसे पानीमें स्थित एक मेंढकीने आकर पी लिया था। उसके पीनेसे उस मेंढकीके गर्भ रह गया और तब उस सतीने समयके पूर्ण हो जानेपर एक सुन्दर कन्याको जन्म दिया था ॥६८-६९॥
पश्चात् उस मेंढकीने यह जानकर कि यह उत्तम लक्षणोंदाली कन्या हमारी जातिके योग्य नहीं है, उसे एक कमलिनीके पत्तेपर रख दिया ॥७०।। ___एक समय मय ऋषि उस तालाबके ऊपर पुनः पहुँचे। तब वहाँ उन्होंने उसे देखा और अपने वीर्यके प्रभावसे उत्पन्न हुई जानकर स्नेहके वश ग्रहण कर लिया ॥७१॥
तत्पश्चात् उन्होंने नाना प्रकारके उपायों द्वारा उसका पालन-पोषण कर वृद्धिंगत किया । सो ठीक भी है, क्योंकि, अपनी सन्तानके परिपालनमें सब ही जन स्वभावतः प्रवृत्त हुआ करते हैं ।।७२॥
६७) क ड तदश्रावि। ६८) अ इ यमेन for मयेन; ड सलिलेस्थया। ६९) व सुन्दराम् । ७०) क इति मत्वा । ७१) क इ स्ववीर्य ।
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