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धर्मपरीक्षा-१७ देहे ऽवतिष्ठमानो ऽपि नात्मा मूढेरवाप्यते। प्रयोगेणे विना काष्ठे चित्रभानुरिव स्फुटम् ॥५७ ज्ञानसम्यक्त्वचारित्रैरात्मनो हन्यते मलः। ददात्यनेकदःखानि त्रिभिाधिरिवोजितः ॥५८ अनादिकालसंसिद्धं संबन्धं जीवकर्मणोः । रत्नत्रयं विना नान्यो नूनं ध्वंसयितुं क्षमः ॥५१ न दीक्षामात्रतः कापि जायते कलिलक्षयः। शत्रवो न पलायन्ते राज्यावस्थितिमात्रतः ॥६० ये दीक्षणेन कुर्वन्ति पापध्वंसं विबुद्धयः ।
आकाशमण्डलाण ते छिन्दन्ति रिपोः शिरः॥६१ ५७) १. परमसमाधितपादिना। ५८) १. कर्म। ६१) १. दुर्बुद्धयः ।
जिस प्रकार काष्ठमें अवस्थित भी अग्नि कभी प्रयोगके बिना-तदनुकूल प्रयत्नके अभावमें-प्राप्त नहीं होती है उसी प्रकार शरीरके भीतर अवस्थित भी आत्माको अज्ञानी जन प्रयोगके विना-संयम व ध्यानादिके अभावमें कभी नहीं प्राप्त कर पाते हैं, यह स्पष्ट है ।५७।।
जिस प्रकार अनेक दुखोंको देनेवाला प्रबल रोग तदनुरूप औषधका ज्ञान, उसपर विश्वास और उसका सेवन; इन तीनके विना नष्ट नहीं किया जाता है उसी प्रकार अनेक दुखोंके देनेवाले आत्माके कर्ममलरूप रोगको भी तत्त्वार्थश्रद्धानरूप सम्यक्त्व, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् आचरण; इन तीनके बिना उस आत्मासे नष्ट नहीं किया जा सकता है ।।५८॥
जीव और कर्म इन दोनोंका जो अनादिकालसे सम्बन्ध सिद्ध है उसे नष्ट करनेके लिए सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्ररूप रत्नत्रयके बिना दूसरा कोई भी समर्थ नहीं है ।।५९॥
दीक्षाके ग्रहण करने मात्रसे कहींपर भी किसी भी प्राणीके पापका विनाश नहीं होता है। सो ठीक भी है क्योंकि, राज्यमें अवस्थित होने मात्रसे-केवल राजाके पदपर प्रतिष्ठित हो जानेसे ही- शत्रु नहीं भाग जाते हैं। अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार कोई राजपदपर प्रतिष्ठित होकर राजनीति के अनुसार जब सेना आदिको सुसजित करता है तब ही वह उसके आश्रयसे अपने शत्रुओंको नष्ट करके राज्यको स्वाधीन करता है, न कि केवल राजाके पदपर स्थित होकर ही वह उसे स्वाधीन करता है । ठीक इसी प्रकार जो मुमुक्षु प्राणी दीक्षा लेकर तदनुसार संयम, तप एवं ध्यान आदिमें रत होता है तब ही वह कर्म-शत्रुओंको नष्ट करके अपनी आत्माको स्वाधीन करता है-मुक्तिपदको प्राप्त होता है, न कि केवल संयमादिसे हीन दीक्षाके ग्रहण कर लेने मात्र से ही वह मोक्षपद प्राप्त करता है ॥६॥
जो मूर्ख जन दीक्षाके द्वारा ही पापको नष्ट करना चाहते हैं वे मानो आकाशकी तलवार के अग्र भागसे शत्रुके सिरको काटते हैं-जिस प्रकार असम्भव आकाश तलवारसे
५८) अ ब ददानो ऽनेक ।
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