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अमितगतिविरचिता 'रविधर्मानिलेन्द्राणां तनयाः संगतो ऽभवन् । कुन्त्याः सत्या विदग्धस्य कस्येदं हृदि तिष्ठति ॥११ देवानां यदि नारीभिः संगमो जायते सह । देवीभिः सह मानां न तदा दृश्यते कथम् ॥१२ सर्वाशुचिमये देहे मानुषे कश्मले कथम् । निर्धातुविग्रहा देवा रमन्ते मलवर्जिताः ॥१३ अविचारितरम्याणि परशास्त्राणि कोविदैः। यथा यथा विचार्यन्ते विशीर्यन्ते तथा तथा॥१४ देवास्तपोधना भुक्त्वा कन्याः कुर्वन्ति योषितः ।
महाप्रभावसंपन्ना नेदं श्रद्दधते'बुधाः ॥१५ ११) १. सूर्यस्य पुत्रः कर्णः, धर्मस्य पुत्रः युधिष्ठिरः । १५) १. न मन्यन्ते।
सती कुन्तीके सूर्य, धर्म, वायु और इन्द्रके संयोगसे पुत्र-क्रमसे कर्ण, युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन-हुए । यह वृत्त किस चतुर मनुष्यके हृदयमें स्थान पा सकता है ? तात्पर्य यह कि इसपर कोई भी विचारशील व्यक्ति विश्वास नहीं कर सकता है ॥११॥
इस प्रकारसे यदि मनुष्य स्त्रियोंके साथ देवोंका संयोग हो सकता है तो फिर मनुष्योंका संयोग देवियोंके साथ क्यों नहीं देखा जाता है ? वह भी देखा-सुना जाना चाहिए था ॥१२॥
मनुष्योंका शरीर जब मल-मूत्रादि रूप सब ही अपवित्र वस्तुओंसे परिपूर्ण एवं घृणित है तब उसमें देव-जिनका कि शरीर सात धातुओंसे रहित और जो मलसे रहित हैंकैसे रम सकते हैं ? कभी नहीं रम सकते हैं। तात्पर्य यह कि अतिशय सुन्दर और मलमूत्रादिसे रहित शरीरवाले देव अत्यन्त घृणित शरीरको धारण करनेवाली मनुष्य स्त्रियोंसे कभी भी अनुराग नहीं कर सकते हैं ॥१३।।
__दूसरोंके-जैनेतर-शास्त्रोंके विषयमें जबतक विचार नहीं किया जाता है तबतक ही वे रमणीय प्रतीत होते हैं । परन्तु जैसे-जैसे विद्वान उनके विषयमें विचार करते हैं वैसेवैसे वे जीर्ण-शीर्ण होते जाते हैं-उन्हें वे अनेक दोषोंसे व्याप्त दिखने लगते हैं ॥१४॥
देव और तपस्वी जन स्त्रियोंको भोगकर पीछे उन्हें महान् प्रभावसे सम्पन्न होनेके कारण कन्या कर देते हैं, इसपर कोई भी विश्वास नहीं कर सकता है ॥१५॥
११) क तनयः संगतो ऽभवत् । १३) अ मानुष्ये । १४) अ ब अविचारेण रम्याणि । १५) अ ब इ कन्याम् ।
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