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धर्मपरीक्षा-११ आसाद्य तरसा गर्भ सा पूर्ण समये ततः। असूत जाम्बवं पुत्रं प्रसिद्धं भुवनत्रये ॥५९ यः कामातमना' ब्रह्मा तिरश्चीमपि सेवते। स सुन्दरी कथं कन्यामेनां मोक्ष्यति मूढधीः ॥६० अहल्यां चित्तभूभल्ली दृष्ट्वा गौतमवल्लभाम् । अहल्यकाकुलो जातो बिडोजाः पारदारिकः ॥६१ गौतमेन क्रुधा शप्तः स सहस्रभगो ऽभवत् । दुःखं न प्राप्यते केन मन्मथादेशतिना ॥३२ मुने ऽनुगृह्यतामेषस्त्रिदर्शरिति भाषिते। सहस्राक्षः कृतस्तेन भूयो ऽनुग्रहकारिणा ॥६३ इत्थं कामेन मोहेन मृत्युना यो न पीडितः। नासौ निर्दूषणो लोकैर्देवः कोऽपि विलोक्यते ॥६४
६०) १. क कामदेव। ६१) १. इन्द्रः । ६२) १. स्रापितवान् । ६३) १. प्रसीदताम्; क अनुग्रहं कुर्वताम् । ६४) १. निर्दोषः।
तब उस रीछनीने शीघ्र ही गर्भको धारण करके समयके पूर्ण होनेपर तीनों लोकोंमें प्रसिद्ध जाम्बव पुत्रको उत्पन्न किया ॥५९॥
इस प्रकार जो ब्रह्मा मनमें कामसे पीड़ित होकर तिर्यचनीका भी सेवन करता है वह मुग्धबुद्धि भला इस सुन्दर कन्याको कैसे छोड़ सकेगा ? नहीं छोड़ेगा ।।६०॥
परस्त्रीका अनुरागी इन्द्र कामकी भल्लीके समान गौतम ऋषिकी पत्नी अहिल्याको देखकर कामसे व्याकुल हुआ ॥६१।।
तब गौतम ऋषिने क्रोधके वश होकर उसे शाप दिया, जिससे वह हजार योनियोंवाला हो गया। ठीक है, कामकी आज्ञाके अनुसार प्रवृत्ति करनेवाला ऐसा कौन है जो दुखको प्राप्त न करता हो-कामीजन दुखको भोगते ही हैं ॥६२।।
तत्पश्चात् जब देवोंने गौतम ऋषिसे यह प्रार्थना की कि हे मुने! इस इन्द्रके ऊपर अनुग्रह कीजिए-कृपाकर उसे इस शापसे मुक्त कर दीजिए-तब पुनः अनुग्रह करके उन्होंने उसे हजार योनियोंके स्थानमें हजार नेत्रोंवाला कर दिया ॥६३॥ ___इस प्रकार लोगोंके द्वारा वह कोई भी निर्दोष देव नहीं देखा जाता है जो कि काम, मोह और मरणसे पीड़ित न हो-ये सब उन कामादिके वशीभूत ही हैं ॥६४॥ ५९) ब पूर्णसमये । ६०) अ क ड इ सुन्दरां । ६१) अ आहल्ली, ब अहिल्लां; अ आहल्लीकाकुलो, ब आजल्पकाकुलो, क ड इ आकर्ण्य विकलो । ६३) ब रिति भाषितः, करिति भाषिते, ड इरति भाषते; अ कृतस्नेहो भूयो । ६४) क ड इ विदूषणो लोके देवः ।
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