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अमितगतिविरचिता स जितो मन्मथो येनं सर्वेषामपि दुर्जयः। तस्य प्रसादतः सिद्धिर्जायते परमेष्ठिनः ॥२६ विप्राणां पुरतः कृत्वा परमात्मविचारणम् । उपेत्योपवनं मित्रमवादीत् खेचराङ्गजः ॥२७ श्रुतो मित्र त्वया देवविशेषः परसंमतः'। विचारणासहस्त्याज्यो विचारचतुराशयः ॥२८ सर्वत्राष्टगुणाः ख्याता देवानामणिमादयः। यस्तेषां विद्यते मध्ये लघिमा स परो गुणः॥२९ पार्वतीस्पर्शतो ब्रह्मा विवाहे पार्वतीपतेः। क्षिप्रं पुरोहितोभूय क्षुभितो मदनादितः ॥३०
२६) १. कामेन [ परमेष्ठिना] । २. दुस्त्यजः । २८) १. लोकमान्यः। २९) १. अणिमामहिमालघिमागरिमान्तर्धानकामरूपित्वम् ।
प्राप्तिप्राकाम्यवशित्वेशित्वाप्रतिहतत्वमिति वैक्रियिकाः॥ ३०) १. पीडितः । किया, तथा जिस कामदेवने तीनों लोकोंके भीतर अवस्थित सब देवोंमें अतिशय सुखी ऐसे अग्निदेवको भी पत्थरों व वृक्षोंके समूहोंके भीतर प्रविष्ट कराया; इस प्रकार अन्य सबोंके लिए दुर्जय-अजेय-वह कामदेव जिसके द्वारा जीता जा चुका है-जो कभी उसके वशीभूत नहीं हुआ है-उस परमेष्ठीके प्रसादसे ही सिद्धि-अभीष्टकी प्राप्ति हो सकती है ॥२०-२६।।
इस प्रकार ब्राह्मणोंके आगे परमात्मा-विषयक विचार करके वह विद्याधरका पुत्र मनोवेग उपवनमें आया और तब मित्र पवनवेगसे बोला कि हे मित्र! तुमने अन्य जनोंके द्वारा माने गये देवविशेषका स्वरूप सुन लिया है । ऐसा वह देव विचारको नहीं सह सकता है-युक्तिपूर्वक विचार करनेपर उसका वैसा स्वरूप नहीं बनता है। इसलिए बुद्धिमान् जनोंको वैसे देवका परित्याग करना चाहिए ॥२७-२८।।
सर्वत्र देवोंके अणिमा-महिमा आदि आठ गुण (ऋद्धियाँ) प्रसिद्ध हैं। उनके मध्यमें जो लघिमा-वायुकी अपेक्षा भी लघुतर शरीर बनानेका सामर्थ्य ( परन्तु प्रकृतमें व्यंगरूपसे लघुता-हीनता-का अभिप्राय है )-नामका गुण है वही उत्कृष्ट गुण इन देवोंके विद्यमान है ।।२९॥
___ यथा-महादेवके विवाहके अवसरपर पुरोहित बनकर ब्रह्मा पार्वतीके स्पर्शसे शीघ्र ही कामसे पीड़ित होता हुआ क्षोभको प्राप्त हुआ ॥३०॥
२६) ब दुस्त्यजः for दुर्जयः । २७) अ ब खचरा । २८) अ इ विचारेणा । २९) ब ये तेषां....नापरे गुणाः; अ ड पुरो for परो। ३०) क्षेत्र for क्षिप्रं ।
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