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धर्मपरीक्षा-१४ वधूः पलायमानेन वरेण व्याकुलात्मना। स्वाङ्गस्पर्शेन निश्चेष्टा पातिता वसुधातले ॥१४ पातयित्वा वधूं नष्टो भर्ता पश्यत पश्यते । लोकैरित्युदिते क्वापि लज्जमानो वरो गतः ॥१५ साधे मासे ततो भूत्वा गर्भः स्पष्टत्वमागतः । उदरेण समं तस्या' नवमासानवर्धत ॥१६ मात्रा पृष्टा ततः पुत्रि केनेदमुदरं कृतम् । साचचक्षे न जानामि वराङ्गस्पर्शतः परम् ॥१७ आगतास्तापसा गेहं भोजयित्वा विधानतः । मातामहेन ते पृष्टाः क यूयं यातुमुद्यताः ॥१८ ऐतैनिवेदितं तस्य भो दुभिक्षं भविष्यति । अत्र द्वादश वर्षाणि सुभिक्षे प्रस्थिता वयम् ॥१९
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१५) १. अहो लोकाः। १६) १. कन्यायाः । १७) १. उवाच। १९) १. क तापसैः । २. कथितम् । ३. निर्गताः । भाग गये । सो यह ठीक भी है, क्योंकि, महान् भयके उपस्थित होनेपर भला स्थिरता कहाँसे रह सकती है ? नहीं रह सकती है ॥१३॥
उस समय भयसे व्याकुल होकर वर भी भाग खड़ा हुआ। तब उसके शरीरके स्पर्शसे निश्चेष्ट होकर वधू पृथिवीतलपर गिर पड़ी ॥१४॥
उस समय देखो-देखो! पति पत्नीको गिराकर भाग गया है, इस प्रकार जनोंके कहनेपर वर लज्जित होता हुआ कहीं चला गया ।।१५।।
___ इससे उसके जो गर्भ रह गया था वह अढाई महीनेमें स्पष्ट दिखने लगा। तत्पश्चात् उसका वह गर्भ उदर वृद्धिके साथ नौ मास तक उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया ॥१६।।
__उसकी गर्भावस्थाको देखकर माताने उससे पूछा कि हे पुत्री ! तेरा यह गर्भ किसके द्वारा किया गया है। इसपर उसने उत्तर दिया कि विवाह के समय हाथीका उपद्रव होनेपर पतिका केवल शरीरस्पर्श हुआ था, इतना मात्र मैं जानती हूँ; इसके अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं जानती हूँ ॥१७॥
एक समय मेरे नानाके घरपर जो तपस्वी आये थे उन्हें विधिपूर्वक भोजन कराकर उसने उनसे पूछा कि आप लोग कहाँ जानेके लिए उद्यत हो रहे हैं ॥१८॥
इसपर वे मेरे नानासे बोले कि हे भद्र ! यहाँ बारह वर्ष तक दुर्भिक्ष पड़नेवाला है, इसलिए जहाँ सुभिक्ष रहेगा वहाँ हम लोग जा रहे हैं । तुम भी हमारे साथ चलो, यहाँ
१४) व पतिता। १५) ड लोकेति भणितः क्वापि । १६) अ सार्धमासे....नवमासेन वर्धितः । १७) अ केन त्वदुदरम् । १८) अ ब मे for ते ।
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